सार
वैसे तो भगवान शिव (Shiva) को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्रों और स्तुतियों की रचना की गई है, लेकिन इन सभी में महामृत्युंजय मंत्र (mahamrityunjay mantra) का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस मंत्र में मरते हुए व्यक्ति को भी जीवनदान देने की शक्ति है। सावन (Sawan) मास में यदि रोज इस मंत्र का विधि-विधान से जाप किया जाए तो किसी भी परेशानी का समाधान हो सकता है। इस मंत्र की रचना कैसे हुई, इससे जुड़ी कथा भी हमारे धर्म ग्रंथों में मिलती है।
उज्जैन. महामृत्युंजय मंत्र के जाप करने से किसी भी परेशानी से बचा जा सकता है। इससे ग्रहों के अशुभ फल भी कम होते हैं। आगे जानिए इससे जुड़ी खास बातें…
मार्कण्डेय ऋषि ने की थी इस मंत्र की रचना
पौराणिक काल में मुकण्ड नाम के एक ऋषि थे, जो भगवान शिव के परम भक्त थे। शिवजी के वरदान से उन्हें पुत्र हुआ तो उन्होंने उसका नाम मार्कण्डेय रखा। लेकिन जब ऋषि को ये पता चला कि उनका पुत्र अल्पायु है तो उन्हें बड़ा दुख हुआ। बड़ा होने पर मार्कण्डेय ऋषि को ये बात पता चली तो उन्होंने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करनी शुरू की और महामृत्युंजय मंत्र की रचना की। जब उनकी मृत्यु का दिन आया तो वे शिव मंदिर में बैठकर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने लगे। जब यमराज उसके प्राण हरने आए तो मार्कण्डेय ऋषि शिवलिंग से लिपट गए। यमराज ने उनके प्राण हरने के लिए जैसे ही अपना पाश फेंका, वहां स्वयं शिवजी प्रकट हो गए और मार्कण्डेय ऋषि की भक्ति देखकर उन्हें अमरता का वरदान दिया।
महामृत्युंजय मंत्र
ऊं हौं जूं सः ऊं भूर्भुवः स्वः ऊं त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊं स्वः भुवः भूः ऊं सः जूं हौं ऊं
मंत्र जाप करते समय ध्यान रखने योग्य बातें...
1. मंत्र का जाप उच्चारण ठीक ढंग से करना चाहिए। अगर स्वयं मंत्र न बोल पाएं तो किसी योग्य पंडित से भी इसका जाप करवाया जा सकता है।
2. मंत्र का जाप निश्चित संख्या में करना चाहिए। समय के साथ जाप संख्या बढ़ाई जा सकती है।
3. भगवान शिव की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर अथवा महामृत्युंजय यंत्र के सामने ही इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
4. मंत्र जाप के दौरान पूरे समय धूप-दीप जलते रहना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
5. इस मंत्र का जाप केवल रुद्राक्ष माला से ही करना चाहिए। बिना आसन पर बैठ मंत्र जाप न करें।
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