सार
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में मची भगदड़ के कई कारण हैं। इन सबके बीच असली परीक्षा अखिलेश यादव की है कि वह बाहरियों को पार्टी में जगह देकर टिकट देने के बाद अपने कार्यकर्ताओं की नाराजगी को किस तरह से मैनेज करते हैं।
दिव्या गौरव त्रिपाठी
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में एक ओर जहां सभी राजनीतिक दल विधानसभा चुनाव (UP Vishansabha Chunav 2022) की तैयारी में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janta Party) से मंत्रियों और विधायकों के इस्तीफे की झड़ी लगी है। खास बात है कि इन इस्तीफों के पीछे सियासी कारणों के साथ निजी कारण भी अहम वहज माने जा रहे हैं। भविष्य में चुनाव से पहले ऐसा कुछ हो सकता है, इसकी आहट काफी पहले ही लग गई थी। चुनाव की दहलीज पर खड़ी भाजपा में भगदड़ के कारणों की समीक्षा से पता चलता है कि सत्ताधारी दल के लगभग 100 विधायकों का दिसंबर 2019 में विधानसभा में दिया गया धरना, विधायकों की बात नहीं सुने जाने से उपज रहे असंतोष का पहला सबूत था।
अगर हम थोड़ा सा पीछे जाएं तो पता लगता है कि भाजपा के विधायक नंद किशोर गुर्जर (BJP MLA Nand Kishor Gurjar) को प्रशासन द्वारा प्रताड़ित किए जाने की बात जब विधानसभा में उठाने की इजाजत नहीं मिली थी तो पार्टी के करीब 100 विधायक विधानसभा में ही धरने पर बैठ गए थे। जानकार मानते हैं कि पार्टी के विधायकों में उभर रहे असंतोष का यह पहला संकेत था, जिसे पार्टी नेतृत्व को समझना चाहिए था। हालांकि राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत मिश्रा बताते हैं कि सत्तारूढ़ दल के मंत्रियों और विधायकों में असंतोष के निजी कारण भी हैं। इनमें से तमाम विधायकों को अपने टिकट कटने या उनके अपनों को टिकट नहीं मिलने की चिंता शामिल हैं।
...तो पहले क्यों नहीं छोड़ा सरकार का साथ?
उदाहरण के तौर पर पडरौना से विधायक और भगदड़ का नेतृत्व कर रहे स्वामी प्रसाद मौर्य अपने बेटे के लिए ऊंचाहार से टिकट चाहते थे। लेकिन यह मांग पूरी करने का उन्हें भाजपा से कोई आश्वासन नहीं मिला। इन इस्तीफों पर नजर डालें तो मंत्रियों और विधायकों ने इस्तीफों में एकस्वर से दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों को उपेक्षित करने का आरोप योगी सरकार और भाजपा पर लगाया गया है। इस्तीफा देने वाले सभी मंत्री और विधायक पिछड़े वर्ग से आते हैं। लेकिन सवाल यह भी है कि किसी जाति या वर्ग को लेकर सरकार बेहतर काम नहीं कर रही थी तो ये सभी नेता अब तक सरकार में क्यों बने थे। वरिष्ठ पत्रकार मिश्रा के मुताबिक, लंबे समय तक इनमें से अधिकतर नेता चुनाव में टिकट की आस लगाए बैठे थे, लेकिन जब उन्हें अंदेशा हो गया कि उनके नेगेटिव रिपोर्ट कार्ड की वजह से उनका टिकट कट जाएगा और उनकी मांगें पूरी नहीं होंगी, तो उन्होंने सपा का दामन थाम लिया।
सपा को फायदे के साथ होगा नुकसान
मिश्रा कहते हैं कि इस भगदड़ से सपा को निश्चित बेशक सपा का फायदा होगा लेकिन इसके साथ ही बाहरी नेताओं के आने से पार्टी के अंदर उभरने वाले असंतोष से नुकसान की भी संभावना है। भाजपा छोड़ने वाले एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर यह भी कहा कि सरकार में शक्ति का केन्द्र मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ही थे, काम को लेकर उन्हें पूरी छूट नहीं थी। इसके अलावा नौकरशाही हावी होने की वजह से भी उनमें गुस्सा भर रहा था।