सार

 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक हलचल तेज है। प्रदेश में कई दिग्गज नेताओं के पहुंचने का दौर जारी है। कोरोना की तीसरी लहर के मद्देनजर चुनाव प्रचार के लिए रैलियों और जनसभाओं पर लगे ब्रेक के बाद उम्मीदवार घर-घर जाकर ही वोट अपील कर रहे हैं। इस बीच भाजपा ने ऐसा प्लान तैयार किया है जिसके जरिए वोटरों की नब्ज को पकड़ा जा सके और उसका असर भी दूर तक दिखाई दे। इसी रणनीति के तहत ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह कैराना पहुंचे हुए हैं। उनके कैराना पहुंचने को बड़े राजनीतिक महत्व की तरह देखा जा रहा है। 

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक हलचल तेज है। प्रदेश में कई दिग्गज नेताओं के पहुंचने का दौर जारी है। कोरोना की तीसरी लहर के मद्देनजर चुनाव प्रचार के लिए रैलियों और जनसभाओं पर लगे ब्रेक के बाद उम्मीदवार घर-घर जाकर ही वोट अपील कर रहे हैं। इस बीच भाजपा ने ऐसा प्लान तैयार किया है जिसके जरिए वोटरों की नब्ज को पकड़ा जा सके और उसका असर भी दूर तक दिखाई दे। इसी रणनीति के तहत ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह कैराना पहुंचे हुए हैं। उनके कैराना पहुंचने को बड़े राजनीतिक महत्व की तरह देखा जा रहा है। 

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अमित शाह कैराना ने पहुंचने के बाद जहां डोर टू जोर जनसंपर्क किया। वहीं वह पीड़िता व्यापारियों से मुलाकात भी की। इस दौरान अमित शाह ने कहा कि 2014 के बाद पहली बार कैराना आया हूँ, मोदी सरकार बनने के बाद बदलाव आया है,पलायन करने वाले वापस आ रहे है,पलायन पीड़ितों में अब कोई भय नही है,आज यूपी में विकास दिखाई दे रहा है,किसी को कोई भय नहीं है। मैं आवाहन करता हूँ कि कोविड गाइडलाइंस की वजह से अगर हमारे कार्यकर्ता अगर आपके घर नही पहुंच पा रहे हैं, लेकिन आप भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाइये, ये भयमुक्त समाज आपको उस बात की याद दिला रहा है,पलायन करने वाले अब पलायन करके जा चुके हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि भाजपा फिर से 300 पार होगी। दरअसल भाजपा ने 2017 में भी यहां से पलायन का मुद्दा उठाया था। वहीं पिछले साल अक्टूबर में अमित शाह ने अपने लखनऊ दौरे के दौरान एक सभा में कहा था कि कैराना का पलायन याद करके मेरा खून खौल उठता है। इसी जनसभा में ही अमित शाह ने यह भी कहा था कि पलायन करने वालों का ही अब पलायन हो रहा है। 

2017 की ही तरह 2022 को भुनाने की तैयारी 
भाजपा 2017 की तरह ही 2022 विधानसभा चुनाव में भी कैराना मुद्दे को भुनाना चाहती है। इसी कड़ी में गृहमंत्री खुद वह पहुंचकर बड़ा संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं। आपको बता दें कि कैराना से पूर्व सांसद बाबू हुकुम सिंह ने अपनी राजनीतिक विरासत अपनी बेटी मृगांका सिंह को सौंप दी थी। मृगांका भाजपा के टिकट पर 2017 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ी। हालांकि उस दौरान बाबूजी से नाराज उनके भतीजे अनिल चौहान मृगांका के सामने रालौद के टिकट पर चुनाव लड़ें। वोट बंटने की वजह से नाहिद हसन को जीत मिली। 

आखिर अमित शाह क्यों संभाल रहे पश्चिमी यूपी की कमान 
पश्चिमी यूपी की कमान खुद गृहमंत्री अमित शाह के संभालने के पीछे की कई वजहें बताई जा रही हैं। हालांकि इसमें मुख्य वजह है कि सपा और आरएलडी के वोट बैंक में खींचतान मची है। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगों के चलते खासतौर पर पश्चिमी यूपी को बड़ा नुकसान हुआ था। इसका फायदा बीजेपी को मिला था। 2022 चुनाव स पहले सपा-आरएलडी को ऐसा लगा कि कई सालों के बाद मुजफ्फरनगर दंगा अब पश्चिमी यूपी में कोई खास मुद्दा नहीं बनेगा, लेकिन दंगों की टीस यहां अभी भी बरकरार है और यही टीस सपा-आरएलडी गठबंधन के जाट-मुस्लिम वोट को काटती दिख रही है।