सार

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में सोमवार को निधन हो गया। वह पिछले काभी समय से बीमार चल रहे थे। नेताजी का अंतिम संस्कार यूपी के सैफई में किया जाएगा। 

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव को सोमवार को मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। वह पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे। बीते कई दिनों से लगातार तमाम नेतओं ने अस्पताल पहुंचकर मुलायम सिंह का हालचाल लिया था। समाजवादी पार्टी के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर नेताजी के निधन की पुष्टि की गई। मुलायम सिंह के निधन के बाद समाजवाद परिवार में शोक की लहर दौड़ गई। इस दौरान अखिलेश यादव, डिंपल यादव और शिवपाल यादव समेत परिवार के अन्य सदस्य भी दिल्ली में मौजूद थे। प्राप्त जानकारी के अनुसार, मुलायम सिंह यादव का अंतिम संस्कार यूपी के सैफई में किया जाएगा। वहीं सपा संरक्षक के निधन के बाद यूपी में तीन दिन के लिए राजकीय शोक की घोषणा की गई है। 

3 बार सीएम बन संभाली यूपी की सत्ता
मुलायम सिंह यादव पहली बार 1967 में विधायक चुने गए थे। मुलायम सिंह यादव 1989 में पहली बार यूपी के सीएम बन सत्ता संभाली थी। इसके बाद वह दो बार और यूपी के सीएम बने थे। केंद्र में रक्षामंत्री भी रहे। इसके अलावा वह 7 बार लोकसभा सासंद और 9 बार विधायक बने। नेताजी की खास बात ये रही कि वह राजनीतिक कौशल में इतने माहिर थे कि धुर-विरोधी भी उनके मुरीद हो जाते थे। कभी पहलवान और टीचिंग पेश में रहने वाले मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक करियर को भी बहुत अच्छे से संभाला। जनता उन्हें धरती से जुड़ा हुआ नेता मानती थी। वहीं मुलायम सिंह के बीमार होने के बाद सपा कार्यकर्ता और उनके शुभचिंतक उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना कर रहे थे। 80 के दशक में मुलायम सिंह अक्सर लखनऊ में साइकिल की सवारी करते हुए दिख जाते थे। फिलहाल चंद्रशेखर से मतभेदों के चलते उन्हें नई पार्टी बनानी पड़ी थी।

1992 में मुलायम सिंह ने सजपा से तोड़ा था नाता
मुलायम की नाराजगी के कारण तत्कालीन संचार मंत्री जनेश्वर मिश्र ने चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। वह छोटे लोहिया के नाम से जाने जाते थे। इसी बीच राजीव गांधी की मृत्यु के बाद चंद्रशेखर तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के करीब हो गए। जिसके बाद साल 1992 में मुलायम सिंह ने सजपा से नाता तोड़ ही दिया। इसके बाद नेताजी ने समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा कर दी। समाजवादी पार्टी का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन बेगम हजरत महल पार्क में आयोजित किया। इस दौरान बेनी प्रसाद को को कोई पद नहीं मिलने से वह नाराज होकर घर में बैठ गए। जिसके बाद नेताजी ने उन्हें घर जाकर मनाया था। समाजवादी पार्टी बनने के ठीक एक महीने के बाद देश की सबसे बड़ी राजनीतिक घटना घट गई। कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद गिरा दी जिसके बाद पूरा देश भाजपा-मय हो गया। 

देश और राजनीति की नब्ज को अच्छे से पहचानते थे नेताजी
बता दें कि मुलायम सिंह यादव जब पहली बार यूपी के सीएम बने थे तो समाजवादी पार्टी अस्तित्व में नहीं थी। कई सियासी दलों और नेताओं ने उन्हें भरोसेमंद नेता नहीं माना लेकिन हकीकत यही रही कि वह जब तक यूपी की राजनीति में सक्रिय रहे तब वह हमेशा किसी न किसी रुप में आवश्यक बने रहे। बता दें कि 1967 में लोहिया की ही संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने मुलायम सिंह को टिकट दिया था। जिसके बाद वह पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। इसके बाद वह प्रदेश की राजनीति में अपना रास्ता खुद बनाते चले गए। मुलायम को उन नेताओं में जाना जाता था, जो यूपी और देश की राजनीति की नब्ज समझते थे और सभी दलों के लिए सम्मानित भी थे। हालांकि इस वक्त तक मुलायम सिंह राजनीतिक रूप से ताकतवर नहीं रह गए थे। मुलायम सिंह यादव के बेटे और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पार्टी ती तंमान संभाल ली। लेकिन नेताजी मार्गदर्शक के तौर पर हमेशा पार्टी के साथ बने रहे।

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