सार
यूपी की पूर्व मुख्यमंभी और बहुजन समाजवादी पार्टी प्रमुख मायावती ने एक बार फिर संगठन में बदलाव किए है। उन्होंने पार्टी में जोनल व्यवस्था को खत्म करते हुए जोनल कोआर्डिनेटर के पदों को खत्म कर दिया है। पार्टी में अब सिर्फ मंडल प्रभारी ही रहेंगे।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व बहुजन समाजवादी पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने एक बार फिर संगठन में बदलाव किया है। बहुजन समाज पार्टी में जोनल व्यवस्था को खत्म करने के साथ ही जोनल कोआर्डिनेटर के पद समाप्त कर दिए गए हैं। इसको समाप्त करने के बाद अब सिर्फ मंडल प्रभारी ही रहेंगे। 18 मंडलों में बनाए तीन-तीन मंडल प्रभारी बनाए गए हैं। प्रत्येक मंडल के तीन-तीन प्रभारी होंगे। इसके साथ ही विजय प्रताप, मुनकाद अली और राज कुमार गौतम को राज्य स्तरीय कोआर्डिनेटर बनाया गया हैं जो कि सभी मंडलों में संगठन के विस्तार पर नजर रखेंगे।
जोन व्यवस्था में पदाधिकारियों में दिख रहा था मन मुटाव
बसपा सुप्रीमो मायावती ने तीन अप्रैल को पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर सभी भाईचारा कमेटियां को भंग कर दिया है। साथ ही नई तरह से जोन व्यवस्था को लागू किया गया था। तीन मंडलों पर एक जोन बताते हुए जोनल कोआर्डिनेटर बनाए गए थे। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस व्यवस्था से जहां जोनल कोआर्डिनेटर का क्षेत्र बड़ा हो रहा था वहीं मंडल और जोन के बनाए गए पदाधिकारियों में वरिष्ठता को लेकर मन-मुटाव दिख रहा था।
मंडल प्रभारी के दम पर कांशीराम ने बढ़ाया था आगे
पार्टी के कार्यकर्ताओं में वरिष्ठता को लेकर मन मुटाव के चलते बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने जोनल व्यवस्था को खत्म करते हुए लगभग एक दशक पहले वाली मंडल प्रभारी व्यवस्था को ही बनाए रखने का निर्णय किया है। भाईचारा कमेटियों के पदाधिकारियों को मंडल में जगह दी गई है। तो वहीं पार्टी के पुराने नेताओं का कहना है कि कांशीराम ने मंडल प्रभारी व्यवस्था के दम पर बसपा को काफी आगे तक बढ़ाया था। क्योंकि प्रत्याशियों के चयन से लेकर पार्टी की जीत-हार में प्रभारियों की ही अहम भूमिका और जिम्मेदारी होती थी।
नगरीय निकाय चुनाव में पहले से हो बेहतर प्रदर्शन
पदाधिकारियों में मन मुटाव के चलते बसपा सुप्रीमो ने मंडल प्रभारी की व्यवस्था का फैसला लिया। मंडल प्रभारी की अब की गई व्यवस्था में राज्य के 18 मंडलों में से प्रत्येक में तीन-तीन प्रभारी बनाए गए हैं ताकि मंडल में शामिल जिलों के दूर-दराज वाले क्षेत्रों में भी संगठन का ठीक से विस्तार किया जा सके। मायावती की कोशिश है कि इस साल के अंत में होने वाले नगरीय निकाय के चुनाव में उसका पहले से बेहतर प्रदर्शन रहे। दो वर्ष बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में एक दशक पहले वाली नौबत न आए।
चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी को खड़े करने की कोशिश
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद बसपा को नए सिरे से खड़ा करने की कोशिश में जुटी पार्टी प्रमुख मायावती कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। विदित हो कि वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव में पार्टी शून्य पर सिमट कर रह गई थी। हालांकि साल 2019 में सपा-रालोद से गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी पार्टी के 10 सांसद जीते थे। हाल के विधानसभा चुनाव में पार्टी का मात्र एक विधायक चुना गया है।
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