सार
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में एक ओर जहां मुस्लिम प्रोफेसर के संस्कृत पढ़ाने का विरोध हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ यूपी के मेरठ के मदरसे में कुरान के साथ बच्चों को गीता और रामायण भी पढ़ाई जा रही है। यही नहीं, मदरसा चलाने वाले मौलाना महफूज उर रहमान शाहीन जमाली चतुवेर्दी हैं।
मेरठ (Uttar Pradesh). बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में एक ओर जहां मुस्लिम प्रोफेसर के संस्कृत पढ़ाने का विरोध हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ यूपी के मेरठ के मदरसे में कुरान के साथ बच्चों को गीता और रामायण भी पढ़ाई जा रही है। यही नहीं, मदरसा चलाने वाले मौलाना महफूज उर रहमान शाहीन जमाली चतुवेर्दी हैं। हैरान होने की जरुरत नहीं है। इन्हें चारों वेदों का ज्ञान होने की वजह से चतुर्वेदी का खिताब मिला है। इलाके में ये मौलाना चतुर्वेदी के नाम से जाने जाते हैं।
मदरसे में बच्चों को पढ़ाए जाते हैं श्लोक
सदर बाजार में 132 साल पुराना मदरसा इमदादउल इस्लाम है, जोकि हिंदू बाहुल्य क्षेत्र में है। इसके प्रिंसिपल मौलाना महफूज हैं। वो कहते हैं, आज तक मुझे किसी से कोई परेशानी नहीं हुई। यहां के लोग अपने धार्मिक कार्यक्रमों में मुझे बुलाते हैं। मेरे भी सारे दुख-दर्द में वो शरीक होते हैं। मदरसे में देश के विभिन्न राज्यों के 200 से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं। यहां बच्चों को अरबी, फारसी, हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू की तालीम दी जाती है। पढ़ाई पूरी करने वाले छात्रों को हाफिज, कारी और आलिम की डिग्री मिलती है। मैं बच्चों को इस्लाम के साथ हिंदू धर्म के बारे में भी बताता हूं। ताकि उनकी इस्लाम और हिंदू धर्म के बीच गलतफहमी दूर हो सके। बच्चों को गीता और रामायण के बारे में भी शिक्षा दी जाती है। जिसमें वो संस्कृत के श्लोक पढ़ते हैं।
पंडित बशीरुद्दीन से ली थी संस्कृत की शिक्षा
मौलाना चतुर्वेदी की पढ़ाई दारुल उलूम से हुई है। वो कहते हैं, मैंने प्रो. पंडित बशीरुद्दीन से संस्कृत की शिक्षा हासिल करने के बाद एएमयू से एमए (संस्कृत) किया। बशीरुद्दीन संस्कृत के विद्वान होने के चलते पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें पंडित की उपाधि दी थी। मेरा मानना है कि भाषा कोई भी हो वह इस्लाम के खिलाफ नहीं है। हर भाषा खुदा की नेमत है, किसी भी भाषा से दूरी रखना इस्लाम की शिक्षा नहीं है। बता दें, मौलाना के बेटे मसूद उर रहमान भी चतुर्वेदी हैं।
बीएचयू में मुस्लिम प्रोफेसर का विरोध होने पर मौलाना ने कही ये बात
उनका कहना है, बीएचयू में एक मुस्लिम प्रोफेसर का विरोध हो रहा है। वह संस्कृत के बड़े आलिम हैं। उनको संस्कृत सिखाने के लिए ही वहां रखा गया है, लेकिन छात्र उनका विरोध कर रहे हैं। यह नासमझी की बात है। कोई भी धर्म नफरत नहीं सिखाता। भाषा, धर्म से जुड़ी नहीं है। भाषा सांसारिक व्यवहार के लिए होती है, इसको धर्म से जोड़ना ठीक नहीं।