सार

 6 दिसंबर के लिए 150 कंपनी पीएसी और 6 कंपनी केंद्रीय अर्धसैनिक बल तैनात किए गए हैं। इसके अलावा तीन अहम धार्मिक स्थल अयोध्या, काशी और मथुरा की सुरक्षा व्यवस्था अलग से की गई है। आइए, आपको 6 दिसम्बर से जुड़े उस इतिहास के बारे में बताते हैं, जिसने आज भी यूपी की सियासत को एक अलग रंग दे रखा है। आपको बताते हैं कि किन संघर्षों के बाद अयोध्या में राम मंदिर बनने का रास्ता साफ हुआ।

लखनऊ: 6 दिसम्बर यानी यूपी के अयोध्या (Ayodhya)से जुड़ी एक ऐसी संवेदनशील तारीख, जिसके नजदीक आते ही एक ओर जहाँ हिंदुओं में खुशी का माहौल होता है। वहीं, दूसरी ओर पुलिस महकमे की सतर्कता तेज हो जाती है। और यह सतर्कता और सख्ती सिर्फ यूपी (Uttar pradesh) के अयोध्या में ही नहीं बल्कि, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, मथुरा समेत कई जिलों में बढ़ाई जाती है। ऐसा की कुछ साल 2021 के खत्म होने से ठीक पहले 6 दिसम्बर (सोमवार) को प्रदेश भर में देखने को मिल रहा है। खास तैयारियां करते हुए यूपी पुलिस (UP Police) के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार (ADG prashant kumar) ने ठीक एक दिन पहले रविवार को बयान जारी करते हुए बताया  कि प्रदेश में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। 6 दिसंबर के लिए 150 कंपनी पीएसी और 6 कंपनी केंद्रीय अर्धसैनिक बल तैनात किए गए हैं। इसके अलावा तीन अहम धार्मिक स्थल अयोध्या, काशी और मथुरा की सुरक्षा व्यवस्था अलग से की गई है। आइए, आपको 6 दिसम्बर से जुड़े उस इतिहास के बारे में बताते हैं, जिसने आज भी यूपी की सियासत को एक अलग रंग दे रखा है। 

अयोध्या इसिहास का राजनीति से जुड़ाव 
आजाद भारत के धार्मिक और राजनीतिक मसले इस कदर एक-दूसरे से जुड़े हैं कि कई बार इन्हें अलग से देख पाना संभव नहीं। 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में उग्र कारसेवकों की एक भीड़ ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया था। उस समय यूपी में बीजेपी की सरकार थी और कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। यह वह दौर था, जब देश में कांग्रेस विरोध की राजनीति विपक्षी एकजुटता की अहम कड़ी थी। तब कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने के लिए बीजेपी ने जब वीपी सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को बाहर से समर्थन दिया। हालांकि यह गठजोड़ तब बीजेपी के लिए असमंजस की स्थिति वाला बन गया जब वीपी सरकार की तरफ से मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू किए जाने का फैसला हुआ। 

कुछ नेताओं की राय में यह हिंदू समाज को विभाजित करने का एक षड्यंत्र था।  दूसरे कई नेताओं की राय थी कि पिछड़े वर्गों के लिए सकारात्मक कदमों की शुरुआत उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए एक जरूरी कदम थी। ऐसे में बीजेपी और आरएसएस की शाखाओं में इस पर बहसें हुईं कि मंडल आयोग की रिपोर्ट का समर्थन किया जाए या नहीं।  मगर इस मुद्दे पर एक खास रुख अपनाने की बजाए बीजेपी ने राजनीतिक बहस को दूसरी तरफ मोड़ने की कोशिश की। 

आठ राज्यों से होकर करीब 6000 मील की दूरी तय करने वाली थी आडवाणी की रथयात्रा
 पार्टी ने धर्म का मुद्दा चुना और अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए अभियान शुरू करने का फैसला किया। गुजरात के प्राचीन शहर सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक एक रथयात्रा निकालने का ऐलान किया गया। इस अभियान का नेतृत्व बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी कर रहे थे। 25 सितंबर, 1990 से शुरू होकर पांच हफ्ते बाद आडवाणी की रथयात्रा की योजना अयोध्या पहुंचने की थी। इसी क्रम में उनका रथ आठ राज्यों से होकर करीब 6000 मील की दूरी तय करता। विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) से जुड़े लोग शहर-दर-शहर इसके स्वागत में जुट रहे थे। रथयात्रा दिल्ली पहुंच गई, जहां आडवाणी कई दिन तक रुके रहे और सरकार को उन्हें गिरफ्तार करने की चुनौती देते रहे, लेकिन सरकार ने उस चुनौती को नजरअंदाज करना उचित समझा और यात्रा फिर शुरू हो गई। हालांकि, अपने अंतिम मुकाम पर पहुंचने से एक हफ्ते पहले जब रथयात्रा बिहार से गुजर रही थी तो वहां इसे रोक दिया गया। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के आदेश पर आडवाणी को एहतियातन हिरासत में भी ले लिया गया।

विश्व हिन्दू परिषद ने शुभ दिन के रूप में चुना 6 दिसम्बर
साल साल 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 120 सीटों पर जीत हासिल हुई, जो कि उसकी पिछली संख्या से 35 ज्यादा थी। पार्टी ने इसी साल उत्तर प्रदेश की 425 सदस्यीय विधानसभा की 221 सीटों पर जीत हासिल की. इसके बाद कल्याण सिंह यूपी में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री बने। इस बीच राम मंदिर को लेकर आंदोलन जारी रहा। विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने घोषणा की कि 6 दिसंबर 1992 को उस ‘शुभ’ दिन के रूप में चुना गया है, जब राम मंदिर का निर्माण-कार्य शुरू किया जाएगा। नवंबर के मध्य से पूरे देशभर से कारसेवकों का जमावड़ा अयोध्या की तरफ जाने लगा।  

बाबरी ढांचे के गिरते ही चली गई कल्याण सिंह की सरकार
1991 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 120 सीटों पर जीत हासिल हुई, जो कि उसकी पिछली संख्या से 35 ज्यादा थी। पार्टी ने इसी साल उत्तर प्रदेश की 425 सदस्यीय विधानसभा की 221 सीटों पर जीत हासिल की। इसके बाद कल्याण सिंह यूपी में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री बने। कल्याण सिंह ने बतौर सीएम अपने प्रशासन को निर्देश दिया था कि राज्य से और राज्य के बाहर से आने वाले कारसेवकों के खाने और ठहरने की व्यवस्था की जाए। एक लाख से भी ज्यादा कारसेवक अयोध्या में दाखिल हो चुके थे। उनके पास ‘त्रिशूल, तीर और धनुष थे।’ 6 दिसंबर, 1992 को कारसेवकों की उग्र भीड़ ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया। इसके बाद न सिर्फ कल्याण सिंह की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार चली गई, बल्कि कल्याण को एक दिन दिल्ली की तिहाड़ जेल में भी बिताना पड़ा।

कल्याण सिंह ने बोला था कि उन्हें बाबरी ढांचा गिराने का कोई पछतावा नहीं
 8 दिसंबर, 1992 को कल्याण सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, जिस मकसद से वह मुख्यमंत्री बने थे वह पूरा हुआ। उन्होंने कहा था कि वह ऐसी एक नहीं, बल्कि कई सरकार को ठोकर मारने के लिए तैयार हैं। इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कल्याण सिंह ने कहा था, 'उन्हें इस विवादित ढांचे के गिरने का कोई पछतावा नहीं है'। उन्होंने ये भी कहा था, 'मैं ही हूं, जिसने पार्टी के इस बड़े उद्देश्य को पूरा किया है'। भगवान रामलला ढांचे से निकलकर अस्थाई टेंट में आ गए। सुप्रीम कोर्ट ने उस विवादित जमीन पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दे दिया और 6 दिसंबर, 1992 से लेकर 9 नवंबर, 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक रामलला उसी अस्थाई टेंट में विराजमान रहे, लेकिन उनकी पूजा-अर्चना और दर्शन का कार्य निरंतर संपन्न होता रहा। 1993 में तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने विवादित जमीन के आसपास की 67 एकड़ अतिरिक्त जमीन को भी अधिग्रहित कर लिया।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी राम जन्मभूमि का हिस्सा हिंदुओं को दिया
अप्रैल 2002 से इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित जमीन के मालिकाना हक पर सुनवाई शुरू की। 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2-1 जजों के बहुमत के फैसले से विवादित संपत्ति को तीन दावेदारों में बांटने का फैसला सुनाया जन्मभूमि समेत एक-तिहाई हिस्सा हिंदुओं को, एक-तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और तीसरा हिस्सा मुस्लिम पक्ष को। मई 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने कई याचिकाओं को देखने के बाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। बाद के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में मध्यस्थता की कोशिशें भी की गईं, लेकिन विवाद का कोई हल नहीं निकला।

5 अगस्त से शुरू हुआ राम मंदिर निर्माण कार्य
आखिरकार तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 40 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद 16 अक्टूबर, 2019 को दशकों पुराने इस कानूनी विवाद पर फैसला सुरक्षित रख लिया। अंत में 9 नवंबर, 2019 का वह ऐतिहासिक दिन आया जब सुप्रीम कोर्ट ने सदियों पुराने इस विवाद को हमेशा-हमेशा के लिए निपटारा कर दिया। सर्वोच्च अदालत ने संपूर्ण विवादित परिसर पर भगवान रामलला का मालिकाना हक दे दिया और उनके भव्य मंदिर निर्माण के लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाने की जिम्मेदारी सौंप दी। अदालत ने सरकार को मुस्लिम पक्ष को भी मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में किसी महत्वपूर्ण स्थान पर 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया। अदालत के इसी आदेश के बाद श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 5 अगस्त, 2020 को वहां भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन और आधारशिला का कार्यक्रम शुरू किया गया।