सार
यूपी के डिप्टी सीएम सिराथू विधानसभा सीट से प्रत्याशी हैं। उनके बचपन का जीवन पीएम मोदी से काफी मिलता है। केशव ने भी अपने बचपन में स्टेशन पर चाय बेंची है। केशव ने 14 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया था। इसके बाद वह अशोक सिंघल की सेवा में जुट गए।
गौरव शुक्ला
लखनऊ: यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य यूपी चुनाव 2022 में कौशाम्बी जिले की सिराथू सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। सिराथू उनकी कर्मभूमि ही नहीं बल्कि वह जगह भी है जहां उन्होंने फुटपाथ पर चाय बेची है। केशव प्रसाद मौर्य के बचपन कहानी काफी हद तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलती जुलती है। केशव प्रसाद मौर्य ने भी बचपन में अपनी पढ़ाई और परिवार का पेट पालने के लिए सालों तक फुटपाथ पर चाय बेंची वह सुबह साइकिल से अखबार बांटते थे तो दिन भर गुमटी पर चाय बेचते थे। जहां घर के आस-पास के बचच्चे स्कूल में इंटरवल होने पर खेलने के लिए जाते थे वहीं केशव उस दौरान पिता की गुमटी पर पहुंचकर उनका हाथ बंटाते थे।
पीएम मोदी के जैसे ही 14 वर्ष में छोड़ दिया था घर
केशव प्रसाद मौर्य उस दौरान महज 14 साल के ही थे जब उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था। इसी के साथ वह वीएचपी के दिवंगत नेता अशोक सिंघल की शागिर्दी कर ली। केशव का चाय के ठेले से सबसे बड़ी पंचायत तक पहुंचने का सफर भी आसान नहीं रहा। हालांकि आज उनकी यही टाट के पैबंद से सपने को हकीकत बनाने की कहानी दूसरे लोगों के लिए नजीर बन गई। केशव भले ही आज सत्ता की सफलता के शिखर पर हो लेकिन वह फिर भी फुटपाथ पर लोगों के बीच खड़े होकर पकौड़ी और जलेबी खाते नजर आते हैं। यही नहीं वह आज भी चाय वाले की केतली में हाथ लगाकर अपनेपन का अहसास भी करवाते हैं।
गरीब परिवार में हुआ था जन्म
यह बात तकरीबन 50 साल पहले की है जब केशव का जन्म यूपी के कौशाम्बी जिले के सिराथू में रेलवे स्टेशन के नजदीक एक गरीब परिवार में हुआ था। अपने तीन भाइयों में केशव दूसरे नंबर पर थे। उनके पिता तहसील कैम्पस तो कभी फुटपाथ पर चाय का ठेला लगाते थे। केशव और उनके अन्य भाई भी पिता का हाथ उनके काम बंटाते थे। घर में पैसों की तंगी के चलते ही केशव ने सुबह अखबार भी बेचना शुरु किया। बड़े भाई सुखलाल बताते हैं कि केशव सुबह अखबार बेंचते फिर पिता स्वर्गीय श्यामलाल के साथ चाय बेचने में सहयोग करते और फिर पेंट की दुकान पर मजदूरी का भी काम करते।
संघ की शाखा में दिया समय तो परिवार से लगी फटकार
केशव का संघ यानी आरएसएस से जुड़ाव बचपन से ही था। इसी के चलते वह चाय के ठेले पर ज्यादा समय नहीं दे पाते थे। इस बार इस वजह से उन्हें फटकार भी लगी। इसके बाद केशव ने चौदह साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया और इलाहाबाद आकर वीएचपी नेता अशोक सिंघल की सेवा में जुट गए। सिंघल के घर पर रहते ही वह संगठन के काम में हाथ बंटाने लगे औऱ जल्द ही सभी के चहेते बन गए। अब केशव का आधा वक्त पढ़ाई में तो आधा वक्त वीएचपी दफ्तर में लोगो की सेवा में बीतता था। तकरीबन 12 सालों तक उन्होंने न तो घर से न ही परिवार से कोई भई रिश्ता रखा।
अशोक सिंघल के कहने पर बहन की शादी में हुए शामिल
इसी बीच अशोक सिंघल के कहने पर केशव बहन की शादी में शामिल होने के लिए पहुंचे। इसके बाद घरवालों से उनका नाता दोबारा जुड़ गया। भले ही केशव घरवालों से संपर्क नहीं करते थे लेकिन उस दौरान भी जो पैसा वीएचपी दफ्तर में काम के बाद मिलता था उसे केशव परिवारवालों को जरूर भेजते थे। केशव ने अशोक सिंघल के ही सानिध्य से तकरीबन 2 दशक तक विश्व हिंदू परिषद के लिए भी काम किया।
2 बार हार के बाद दर्ज की ऐतिहासिक जीत
राजनीति में आने के बाद केशव ने पहला चुनाव 2004 में बाहुबली अतीक अहमद के प्रभाव वाली सीट इलाहाबाद पश्चिम से लड़ा। हालांकि साल 2004 में और 2007 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद केशव ने 2012 के चुनाव में कौशाम्बी की सिराथू सीट से किस्मत आजमाई और ऐतिहासिक जीत दर्ज की। यही नहीं उन्होंने इस सीट पर पहली बार कमल भी खिलाया। केशव से जुड़े हुए लोग बताते हैं कि उनमें जो जज्बा बचपन में था वह आज भी वैसे ही बरकरार है।
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