सार
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का इलाज लंबे समय से मेदांता अस्पताल में चल रहा था। मुलायम सिंह यादव की मौत की खबर सुनते ही समर्थको में शोक की लहर दौड़ गई। नेतीजी अपने राजनीतिक जीवन में कई बार उतार चढ़ाव देखे पर विपरीत परिस्थितियों में भी कभी धैर्य नहीं खोया।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का लंबे समय से गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में इलाज चल रहा था। आज सपा संरक्षक ने अंतिम सांस ली। लगातार नेताजी के ठीक होने को लेकर पूजन हवन जारी था लेकिन लंबे समय से जिंदगी की जंग लड़ रहे 82 वर्षीय मुलायम सिंह यादव ने दुनिया को अलविदा कह दिया है। रविवार दो अक्टूबर को उनकी हालत बिगड़ने पर उन्हें क्रिटिकल केयर यूनिट में स्थानांतरित कर दिया गया था, जिसके बाद उनकी हालत में कोई खास सुधार देखने को नहीं मिला। जीवन के अंतिम पड़ाव में नेताजी की जिंदगी अस्पताल की जीवन रक्षक दवाओं के भरोसे चली और अंत में उन्होंने प्राण त्याग दिए।
राजनीति में एंट्री करने से पहले मुलायम सिंह यादव कुश्ती लड़ते थे। एक बार उनके गुरु और पूर्व राज्यसभा सांसद उदय प्रताप का कहना था कि मुलायम एग्जाम छोड़कर कुश्ती लड़ने चले जाते थे। साल 1960 में जब मुलायम कॉलेज में पढ़ते थे तो कवि सम्मेलन के मंच पर दरोगा को एक युवा ने चित्त कर दिया। यह युवा कोई और नहीं बल्कि मुलायम सिंह यादव ही थे। उसके बाद मुलायम आगे चलकर इंडियन पॉलिटिक्स में 55 सालों तक अपने दांव-पेंच से विरोधियों को चित्त करने के लिए मशहूर रहे। समाजवाद के सहारे राजनीति करने वाले मुलायम के साथ आगे चलकर कई विवाद भी सामने आए पर मुलायम पत्थर की तरह हर तूफान से टकराते रहे। जानिए उनकी जिदंगी के पांच रोचक किस्सों के बारे में...
1. कवि को इंस्पेक्टर ने दिखाई धौंस तो मुलायम ने मंच पर दिया पटक
26 जून 1960 को मैनपुरी के करहल का जैन इंटर कॉलेज के कैंपस में कवि सम्मेलन चल रहा था। इस दौरान मशहूर कवि दामोदर स्वरूप विद्रोही भी मौजूद थे। वह मंच पर पहुंचकर और अपनी लिखी कविता दिल्ली की गद्दी सावधान पढ़ना शुरू की जो सरकार के खिलाफ थी। इसी कारण वश वहां पर तैनात यूपी पुलिस का इंस्पेक्टर मंच पर गया और उन्हें कविता पढ़ने से रोकने लगा। उसके द्वारा मना करने पर नहीं माने तो उनका माइक छीन लिया। फिर इंस्पेक्टर ने कवि को डांटते हुए कहा कि आप सरकार के खिलाफ कविता नहीं पढ़ सकते। इसकी वजह से मंच पर ही बहस हो रही थी कि दर्शकों के बीच बैठा 21 साल का पहलवान दौड़ते हुए मंच पर पहुंचा और सिर्फ 10 सेकंड के अंदर इंस्पेक्टर को उठाकर मंच पर ही पटक दिया। यह नौजवान कोई और नहीं बल्कि मुलायम सिंह यादव थे।
2. मुलायम ने समर्थकों से कहा कि चिल्लाओ नेताजी मर गए
4 मार्च 1984 को नेताजी का इटावा और मैनपुरी में रैली थी। उसके बाद वो मैनपुरी में अपने एक दोस्त से मिलने गए, दोस्त से मुलाकात के बाद वो एक किलोमीटर ही चले थे कि गाड़ी पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई। नेताजी की गाड़ी के सामने छोटेलाल और नेत्रपाल सामने कूद गए। करीब आधे घंटे तक पुलिसवालों के बीच फायिरंग चलती रही। छोटेलाल मुलायम सिंह यादव के साथ ही चलता था इसलिए उसे पता था कि वह गाड़ी से किधर बैठे हैं। इसी वजह से उन दोनों ने नौ गोलियां गाड़ी के उस हिस्से पर चलाई जहां नेताजी बैठा करते थे। लगातार फायरिंग से ड्राइवर का ध्यान हटा और उनकी गाड़ी डिस्बैलेंस होकर सूखे नाले में गिर गई। इस वारदात से उनको समझ आ गया कि उनकी हत्या की साजिश की गई है। उन्होंने तुरंत सबकी जान बचाने के लिए एक योजना बनाई और समर्थकों से कहा कि वो जोर-जोर से चिल्लाएं नेताजी मर गए। उन्हें गोली लग गई और नेताजी नहीं रहे। जब नेताजी के समर्थकों ने चिल्लाना शुरू किया तो हमलावरों को लगा कि नेताजी सच में मर गए। उन्हें मरा हुआ समझकर हमलावरों ने गोलियां चलाना बंद कर वहां से भागने लगे लेकिन पुलिस की गोली लगने से छोटेलाल की मौके पर ही मौत हो गई और नेत्रपाल बुरी तरह घायल हो गया। उसके बाद सुरक्षाकर्मी नेताजी को एक जीप में 5 किलोमीटर दूर कुर्रा पोलिस स्टेशन तक ले गए।
3. 1984 में चंद्रशेखर के सहयोग से नेताजी बने गए थे मुख्यमंत्री
1984 के बाद मुलायम सिंह कांग्रेस सरकार की नीतियों के खिलाफ और भी अधिक मुखर हो गए। उन्होंने जिलेवार दौरा शुरू किया। 1989 में राजीव गांधी की सरकार केंद्र से और एनडी तिवारी की सरकार यूपी से चली गई। इसके बाद नए सीएम के लिए जनता दल के विधायकों की बैठक हुई। इस बैठक में मुलायम के मुकाबले में चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह थे। हालांकि चंद्रशेखर के सहयोग से मुलायम सिंह यादव ही सीएम बन गए।
4. कांग्रेस के समर्थन के बाद नेताजी ने भंग कर दी थी विधानसभा
साल 1989 में लोकदल में मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 90 का दौर शुरू होते-होते पूरे देश में मंडल-कमंडल की लड़ाई शुरू हो गई। ऐसे में साल 1990 में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए कारसेवा की शुरुआत की गई। इस बीच कारसेवक जैसे ही विवादित ढांचे के करीब पहुंचे तो मुलायम सिंह यादव ने सुरक्षाबलों को गोली चलाने का आदेश दे दिया। सुरक्षाबलों के द्वारा की गई इस कार्रवाई में कई कारसेवक मारे गए और सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हो गए। जिसमें 28 लोग मारे गए थे और इस घटना के बाद कांग्रेस ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया लेकिन उससे पहले नेताजी ने विधानसभा भंग की सिफारिश कर दी। उसके बाद दोबारा विधानसभा चुनाव हुए लेकिन जनता ने मुलायम सिंह यादव की पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया।
5. मुलायम ने दलित नेता कांशीराम के साथ गठबंधन का किया ऐलान
साल 1956 में राममनोहर लोहिया और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर समझौते के तहत एक साथ आने की योजना कर रहे थे हालांकि इसी बीच अंबेडकर का निधन हो गया। जिसकी वजह से लोहिया की दलित-पिछड़ा जोड़ की योजना सफल नहीं हो सकी। साल 1992 में बाबरी विध्वंस के साथ मुलायम ने लोहिया की इस योजना को अमल में लाने की दिशा में काम शुरू कर दिया। वहीं नेताजी ने बड़े दलित नेता कांशीराम के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया। इस मास्टर स्ट्रोक का परिणाम चुनावी नतीजो में भी देखने को मिला। 422 सीटों वाली विधानसभा में सपा-बसपा गठबंधन को 176 सीटें मिली और भारतीय जनता पार्टी बहुमत से दूर हो गई।
6. मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम का स्लोगन रहा चर्चित
6 दिसंबर 1992 को बाबरी के विवादित ढांचे को कारसेवकों के द्वारा गिरा दिया गया। इस घटना के बाद तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह के द्वारा इस्तीफा दे दिया गया। राज्य में राष्ट्रपति शासन के छह माह बाद विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में भी भाजपा की जीत तय थी लेकिन मुलायम सिंह ने कांशीराम को साथ में ले लिया। कांशीराम ने मुलायम के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। इस समर्थन का परिणाम चुनावी रिजल्ट पर भी दिखा। मुलायम ने अन्य छोटे दलों को साथ मिलाकर सत्ता में वापसी कर ली। मुलायम के सत्ता में आने के बाद UP में एक स्लोगन 'मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम' खूब चर्चित हुआ।
7. नेताजी ने बाबरी गिराने के आरोपी कल्याण सिंह का चुनाव में कर दिया समर्थन
साल 2009 में भारतीय जनता पार्टी छोड़ एटा से निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले कल्याण सिंह के समर्थन में मुलायम सिंह ने जनसभा कर दी। कल्याण बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय मुख्यमंत्री थे और अवमानना के मामले में सजा भी काट चुके थे। उसके बाद कल्याण सिंह के समर्थन देने के फैसले पर पार्टी के अंदर ही बगावत हो गई। सीनियर नेता आजम खान ने मुलायम सिंह यादव पर सरेराह निशाना साधा और चुनाव में इसका नुकसान मुलायम सिंह यादव को उठाना पड़ा। हालांकि मुलामय के समर्थन में कल्याण सिंह चुनाव जीत गए।
8. गेस्ट हाउस कांड में मायावाती ने सपा कार्यकर्ताओं पर लगाया था गंभीर आरोप
2 जून 1995 को लखनऊ गेस्ट हाउस में जो कुछ भी हुआ उसके बाद बसपा से मुलायम सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला किया। इस वजह से गेस्ट हाउस में विधायकों के साथ बैठक बुलाई गई और मीटिंग शुरू होते ही सपा कार्यकर्ताओं ने हंगामा शुरू कर दिया। इस दौरान मायावाती की जान पर खतरा बन आया हालांकि सुरक्षाकर्मियों की वजह से मायावती बच गई पर उन्होंने आरोप लगाया कि सपा कार्यकर्ता उन्हें मारना चाहते थे ताकि बसपा को खत्म किया जा सके।
9. साल 1996 में नेताजी बने देश के रक्षा मंत्री, राजनीतिक भविष्य को लेकर शुरू हुई थी चर्चा
लखनऊ गेस्ट हाउस कांड के बाद मुलायम सिंह यादव की सरकार गिर गई और मायावती ने भाजपा के सहयोग से सरकार बनाई। इसके बाद मुलायम और उनके भाई शिवपाल के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ। इस प्रकरण के बाद मुलायम के राजनीतिक भविष्य को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई। हालांकि मुलायम ने बड़ा दांव खेल केंद्र का रुख किया। 1996 के लोकसभा चुनाव में 17 सीटें मिलने और 13 दिन की अटल सरकार गिरने के बाद वह रक्षामंत्री बनाए गए।
10. फंड की कमी से जूझ रही थी समाजवादी पार्टी को मिली संजीवनी
साल 2007 के विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद समाजवादी पार्टी 100 के अंदर ही सिमट गई। चुनावी हार की समीक्षा में संसाधनों की कमी की बात सामने आई। इस बीच अमर सिंह के सहयोग से मुलायम सिंह ने उद्योगपतियों का साथ लेना शुरू किया। इसके बाद फाइव स्टार होटलों में सपा की बैठकें होना शुरू हो गई। बदलाव के बीच सपा सबसे ज्यादा चंदा हासिल करने वाली पार्टियों की लिस्ट में भी शामिल हुई।
कभी जन्मदिन पर करते थे रक्तदान, अब किडनी दान देकर बचाना चाहते हैं मुलायम सिंह यादव की जान
इस तरह से साधना गुप्ता के करीब आए थे मुलायम सिंह यादव, काफी चर्चाओं में रही थी दोनों की लव स्टोरी
अब तक ऐसा रहा मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक सफर, जानिए 55 सालों में क्या पाया और क्या खोया