सार
प्रधानमंत्री मोदी की ओर से शुक्रवार को कृषि कानूनों को वायस लेने का ऐलान किया गया। जिसपर सपा प्रवक्ता अनुराग भदौरिया ने कहा कि बीजेपी ने पूर्वांचल एक्सप्रेस वे पर समाजवादी पार्टी का विजय रथ देखा, जिससे बीजेपी को सत्ता खोने का डर सताने लगा। तभी बीजेपी ने अपने कृषि कानूनों को वापस लिया।
लखनऊ: प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार सुबह देश को संबोधित करते हुए कृषि कानूनों को वापस लेने का बड़ा ऐलान किया। जिसके बाद बीजेपी सरकार पर विपक्ष की ओर से अलग अलग तरह से जवाबी हमला बोला जाने लगा। इन सब के बीच सपा प्रवक्ता अनुराग भदौरिया ने कहा कि सपा की विजय रथ यात्रा देखकर बीजेपी को सत्ता जाने का डर सताने लगा, जिस वजह से भारतीय जनता पार्टी को ये कानून वापस लेने पड़े।
बोले सपा प्रवक्ता- 'अखिलेश की रात यात्रा देखकर डर गई BJP, तभी हुई कृषि कानून की वापसी'
शुक्रवार को प्रधानमंत्री मोदी ने बड़ी ही भावुकता के साथ कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान किया। वहीं, सपा प्रवक्ता अनुराग भदौरिया ने इसे चुनावी स्टंट बताते हर कहा कि इस कानून के चलते हो रहे आंदोलनों के बीच सैंकड़ो किसानों की मौत हो गई, किसानों को कुचल दिया गया, इसपर प्रधानमंत्री ने एक बार भी नहीं बोला। लेकिन जैसे ही पूर्वांचल एक्सप्रेस वे पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का रथ निकला और उन्होंने देखा कि जनता रात में भी ठंड से ठिठुरते हुए लाखों लोग समाजवादी पार्टी के जिंदाबाद का नारा लगाया रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी को अपनी बात का एहसास हो गया है कि उसकी सत्ता जा रही है। इसी सत्ता के खोने के डर से बीजेपी ने कृषि कानूनों को वापस ले लिया।
हार के डर से वापस लिए बिल
पीएम के इस फैसले के बाद विपक्ष की प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद व यूपी प्रभारी संजय सिंह ने कहा ये मोदी के अन्याय पर किसान आंदोलन की जीत की ढेरों बधाई। संजय सिंह ने कहा भारत के अन्नदाता किसानो पर एक साल तक घोर अत्याचार हुआ है। जिसमे सैंकड़ों किसानो की शहादत हुई। अन्नदाताओं को आतंकवादी कह कर अपमानित किया। आखिर इस पर मौन क्यों रहे प्रधानमंत्री मोदी ? देश समझ रहा है। ये तीनो बिल इसलिए वापस लिए गए हैं। चुनाव दर चुनाव भारतीय जनता पार्टी को किसान सबक सिखा रहें थे। इसलिए हार के डर से ये तीनो काला क़ानून वापस लिया है। उन्होंने कहा की आजादी के बाद से यह सबसे लंबा चलने वाला किसान आंदोलन रहा। जिसमें तमाम तरह की यातनाएं उनके ऊपर की गई। इस आंदोलन के दौरान 750 किसानों ने अपनी शहादत दी।