सार

अब्दुल्ला खान की विधायकी रद्द होने के बाद अब उनकी विधायकी निधि पर शिकंजा कस सकता है। इसको लेकर बीजेपी नेता मांग कर रहे है कि विधायक निधि की रिकवरी की जाए। दरअसल अब्दुल्ला खान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज की थी। कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा है। 

लखनऊ: समाजवादी पार्टी के विधायक व पूर्व मंत्री आजम खान के द्वारा भड़काऊ भाषण देने के मामले में रामपुर कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया था। जिसके बाद उनको तीन साल की सजा के साथ-साथ छह हजार रुपए का जुर्माना अदा करने की सजा सुनाई। जिसके बाद उनकी विधायकी रद्द हो गई। वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने उनके बेटे अब्दुल्ला आजम की विधायकी रद्द होने के फैसले को जारी रखते हुए उनकी याचिका भी खारिज कर दी है। दरअसल अब्दुल्ला आजम ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसके खारिज होने पर अब्दुल्ला आजम पर विधायक निधि के खर्च किए गए करीब साढ़े 65 लाख रुपए लौटाने के लिए शिकंजा कस सकता है।

साल 2019 में विधानसभा सदस्यता हुई थी रद्द
सुप्रीम कोर्ट में याचिका के खारिज होने के बाद उनकी विधायक निधि की रिकवरी को लेकर भाजपा नेता मांग उठा रहे है। इतना ही नहीं विधायक निधि में खर्च हुए रुपए को लेकर दोबारा मांग उठा रहे हैं। पूर्व मंत्री आजम खान के बेटे और रामपुर की स्वार टांडा सीट से विधायक अब्दुल्ला आजम की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं। साल 2017 में अब्दुल्ला आजम ने स्वार टांडा सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा था और वह विजयी हुए थे। कोर्ट में विचाराधीन बर्थ सर्टिफिकेट के मामले में अब्दुल्ला आजम की साल 2019 में विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई थी। पर दोबारा चुनाव होने पर अब्दुल्ला आजम फिर इस सीट पर जीतकर कब्जा किया। विधानसभा सदस्यता रद्द होने से हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अब्दुल्ला आजम ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी।

आजम खान के विरोधी ने भी की थी मांग
अब्दुल्ला आजम की विधानसभा सदस्या रद्द होने पर उनसे विधायक निधि के द्वारा वेतन, खर्च किए गए भत्ते और यात्रा शुल्क के अंतर्गत करीब 65 लाख रुपए की मांग की गई थी। उसके बाद उन्होंने यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचारधीन होने की दलील देते हुए इस रकम को नहीं लौटाया था। यह मांग बीजेपी नेता और आजम खान के विरोधी माने जाने वाले आकाश सक्सेना उर्फ हनी ने की थी। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के खिलाफ दी गई याचिका खारिज दी है और उसी के फैसले को बरकरार रखा है। 

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