सार
पीएम मोदी के तीनों कृषि कानून वापस लेने के फैसले को राजनीतिक विशेषज्ञ मास्टरस्ट्रोक तो विपक्षी पार्टियां इसे मोदी का बैकफुट पर जाना बता रही हैं।
लखनऊ/दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने आज सुबह 9 बजे राष्ट्र के नाम संबोधन में बेहद भारी मन से कहा कि 'हमारी तपस्या में कमी रही, हम किसानों को समझा नहीं पाए' इस वजह से तीनों कृषि कानून वापस लेने का फैसला कर रहे हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ इसे मास्टरस्ट्रोक (Master Stroke) तो विपक्षी पार्टियां इसे मोदी का बैकफुट पर जाना बता रही हैं। कई राज्यों में विधानसभा चुनावों की सरगर्मी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) का यह फैसला बता रहा है कि पीएम ने एक तीर से कई निशाने साध दिए हैं।
एक साल से चल रहे आंदोलन की धार हुई कुंद
दरसअल कृषि कानूनों के चलते पश्चिम यूपी, हरियाणा और पंजाब के किसान दिल्ली-यूपी और दिल्ली-हरियाणा बॉर्डरों पर पिछले एक साल से आंदोलन कर रहे थे। माना जा रहा था कि इस वजह से यूपी में बीजेपी की सत्ता तक पहुंचने की राह कठिन दिखाई दे रही थी। मोदी के इस फैसले से न सिर्फ रास्ते का कांटा हटा है बल्कि जाटलैंड में विपक्ष की राजनीति को भी बड़ा झटका लगा है।
पंजाब में कैप्टन के सहारे बीजेपी चलेगी अपना दांव
किसान बिल वापस लेने के पीछे पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amrinder Singh) का अहम रोल माना जा रहा है। पीएम के इस फैसले की कैप्टन अमरिंदर ने सराहना की है।
वेस्ट यूपी से बीजेपी को बड़ी उम्मीद
उत्तर प्रदेश में पिछले तीन चुनावों 2014 लोकसभा, 2017 विधानसभा (Assembly Election) और 2019 लोकसभा चुनाव में पश्चिम यूपी से बीजेपी (Bhartiya Janta Party) को बड़ी जीत मिली थी। तीनों ही चुनावों में बीजेपी को ध्रुवीकरण का बहुत फायदा मिला था। 2017 में वेस्ट यूपी के 136 विधानसभा सीटों में से 109 सीटों पर बीजेपी काबिज रही थी। जबकि 2012 के चुनाव में उसने सिर्फ 38 सीटें जीती थीं। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में 2014 की तुलना में उसे 5 सीटों का घाटा उठाना पड़ा। इसके पीछे सपा-बीएसपी और आरएलडी का गठजोड़ मुख्य वजह थी। 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में किसान आंदोलन वेस्ट यूपी में बड़ा मुद्दा बन रहा था।
जाट-मुस्लिम एकता में पड़ेगी फूट
पिछले साल नवंबर में शुरू हुए किसान आंदोलन ने पश्चिम यूपी में जाट-मुस्लिम को एकजुट किया था, इससे बीजेपी की चिंता बढ़ने लगी थी। आपको बता दें 2013 से पहले जाटों को राष्ट्रीय लोकदल का कोर वोटबैंक माना जाता था लेकिन मुजफ्फरनगर दंगों ने यहां से सियासी हालात पलट दिए थे। जाट-मुस्लिम एकता पर दरार पड़ गई थी जिसका सीधा फायदा 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिला था।
सक्रिय होने लगी थी आरएलडी
किसान आंदोलन से लामंबद हुए जाटों को लुभाने के लिए आरएलडी भी पश्चिम यूपी में एक बार फिर सक्रिय हो गई थी। इससे जाट समुदाय को लगने लगा था कि आरएलडी को हराकर उन्होंने गलती कर दी। किसान आंदोलन शुरू होने के बाद यूपी में इस साल पंचायत हुए जिसमें बीजेपी को चुनौती मिली और मतदाताओं की ओर से चुने जाने वाले जिला पंचायत सदस्यों में सपा और आरलएडी को यहां अच्छी खासी जीत मिली थी।