सार

कानपुर में दसानन रावण के मंदिर के पट सिर्फ विजय दशमी के दिन ही खुलते हैं। इस खास दिन पर पूजा के बाद सालभर के लिए इस मंदिर के कपाट को बंद कर दिया जाता है। दूर-दराज से लोग यहां पर पहुंचते हैं। 

कानपुर: जनपद में एक ऐसा मंदिर है जिसके पट साल में सिर्फ एक बार विजय दशमी पर ही खुलते हैं। खास बात है कि इस मंदिर में विराजमान प्रतिमा पर तरोई के फूल अर्पित किए जाते हैं। यह मंदिर दसानन रावण का है। दशहरा वाले जब जब हर जगह असत्य पर सत्य की जीत और श्री राम के जयकारे लग रहे होते हैं तो इस मंदिर में रावण की पूजा के लिए लोग जुटते हैं। कैलाश मंदिर शिवाला में दसानन का भी मंदिर बना हुआ है। माना छिन्नमस्ता मंदिर के द्वार पर ही रावण का मंदिर बना हुआ है।

दशकों पहले हुई थी मंदिर की स्थापना
कहा जाता है कि यहां पर स्व. गुरु प्रसाद शुक्ला ने तकरीबन 155 साल पहले मां छिन्नमस्ता का मंदिर और कैलाश मंदिर की स्थापना करवाई थी। इस मंदिर में मां काली, मां तारा, षोडशी, भैरवी, भुनेश्वरी, धूमावती, बंगलामुखी, मतांगी, जया, विजया, भद्रकाली, अन्नपूर्णा, नारायणी, यशोविद्या, ब्रह्माणी, पार्वती, जगतधात्री, श्री विद्या, देवसेना आदि देवियां विराजमान हैं। शिव और शक्ति के बीच में दसानन का यह मंदिर हैं। यहां रावण की प्रतिमा भी स्थापित है।

दशहरा के दिन ही खुलते हैं मंदिर के पट
आपको बता दें कि रावण शक्तिशाली होने के साथ ही प्रकांड विद्वान पंडित, शिव और शक्ति का साधक था। रावण को कई और वरदान भी प्राप्त थे। उसकी नाभि में अमृत था। भगवान राम ने जब उसकी नाभि को बाण से भेद दिया तो दसकंधर धरती पर आ गिरा लेकिन उसकी मृत्यु नहीं हुई थी। इसके बाद भगवान श्री राम ने लक्ष्मण को उसके पास ज्ञान प्राप्ति के लिए भी भेजा। दशहरा के दिन रावण रावण के मंदिर के पट खुलते हैं तो लोग यहां पर बल, बुद्धि, दीर्घायु और अरोग्यता का वरदान पाने के लिए जुटते हैं।

प्रतिमा पर अर्पित किया जाता है तरोई का फूल

लंकेश के दर्शन के लिए दूर-दराज से लोग यहां पर आते हैं। विजय दशमी के दिन सुबह शिवाले में शिव का अभिषेक करने और दसानन मंदिर में श्रृंगार के साथ दूध, दही, घृत, शहद, गंगाजल, चंदन से अभिषेक किया जाता है। इसके बाद महाआरती भी होती है। जिसमें लोगों की भीड़ भी जुटती है। यहां पर सुहागिनें शक्ति के साधक तरोई का पुष्प अर्पित करके अखंड सौभाग्य और संतान के लिए कामना करती हैं। यहां सरसों के तेल का दीपक जलाने के साथ ही लोग पुष्प अर्पित कर साधना करते थे। सिर्फ कानपुर ही नहीं बल्कि उन्नाव, कानपुर देहात, फतेहपुर समेत कई जिलों के लोग यहां पर आते हैं। इस एक दिन के पूजन के बाद फिर सालभर के लिए इस मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। 

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