सार

अखिलेश यादव 2022 के चुनाव में छोटे दलों के साथ मिलकर नया चुनावी समीकरण बना रहे हैं। सपा पार्टी अब तक अलग-अलग इलाकों के पांच छोटे दलों से गठजोड़ कर चुकी है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक अखिलेश अगर गठबंधन के वोट को  बूथ तक ले जा कर डलवा पाएं तब तो कोई फायदा है वरना नुकसान होगा। भाजपा का बूथ लेवल का मैनेजमेंट बहुत अच्छा है।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (Up Vidhan sabha Election 2022) में सभी दल चुनावी समीकरण बैठने में जुट गए हैं। जानकारों के मुताबिल यूपी का चुनाव दो हिस्सों में बटा हुआ है। एक हिस्सा में मौजूद सरकार में बैठी बीजेपी पार्टी है, तो वहीं दूसरी तरफ विपक्ष में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) बैठी है।यूपी में चुनाव दो पार्टियों के बीच में होना तय माना जा रहा है। लेकिन इसमें छोटे दलों की भूमिका भी अहम मानी जा रही है। इसीलिए अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) छोटे दलों के साथ हाथ मिलाने में पीछे नहीं हट रहे हैं। 

5 दलों के गठबंधन कर चुकी है सपा

बता दें यूपी में इस वक्त सियासत की नई बिसात बिछ रही है, और अखिलेश यादव की सारी रणनीति इस बात पर फोकस हो गई है कि किसी भी तरह से यूपी से बीजेपी को उखाड़ फेंकना है। ऐसे में अखिलेश यादव 2022 के चुनाव में छोटे दलों के साथ मिलकर नया चुनावी समीकरण बना रहे हैं। सपा पार्टी अब तक अलग-अलग इलाकों के पांच छोटे दलों से गठजोड़ कर चुकी है। 

इन दलों के साथ किया गठबंधन

यूपी में गैर-बीजेपी दलों के लिए समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी ठौर बनती दिख रही है। सूबे में एंटी-बीजेपी पॉलिटिक्स के केंद्र में हैं अखिलेश यादव। आरएलडी चीफ जयंत चौधरी की अखिलेश यादव के बाद एसपी-आरएलडी गठबंधन पर मुहर लग चुकी है बस सीट शेयरिंग फॉर्म्युले का औपचारिक ऐलान बाकी है। वहीं केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल की पार्टी अपना दल ने भी अखिलेश के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया है। रालोद से गठबंधन से पूर्व अखिलेश ने केशव देव मौर्य के महान दल, डा. संजय सिंह चौहान की जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट), शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से गठबंधन किया है।

अखिलेश को होगा फायदा या नुकसान ?

वोटकटवा की भूमिका निभाने वाले छोटे दलों की भूमिका इस बार बढ़ी हुई दिख रही है। बड़ी पार्टियां छोटे दलों को अपने साथ लेकर जातीय और क्षेत्रीय दोनों संतुलन बना रही हैं, जिससे जीत का समीकरण फिट हो जाए। अखिलेश यादव ने पहले ही साफ कर दिया था कि इस बार वह बड़े दलों से गठबंधन नहीं करेंगे। छोटे दलों के साथ उनका गठजोड़ होगा। इसी हिसाब से वह गठबंधन कर रहे हैं।

सपा के पास नेता तो हैं कार्यकर्ता नहीं

लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अशोक जी ने बताया कि अखिलेश अगर गठबंधन के वोट को बूथ तक ले जा कर डलवा पाएं तब तो कोई फायदा है वरना नुकसान होगा। भाजपा का बूथ लेवल का मैनेजमेंट बहुत अच्छा है। बीजेपी हमेशा बूथ पर काम करती है। वहीं अन्य पार्टी गठबंधन करने पर पूरा ध्यान केंद्रित कर रही हैं। अखिलेश यादव के पास नेताओं की संख्या ज्यादा है और कार्यकर्ताओं उनके पास नहीं हैं।वहीं बीजेपी के पास नेता कम है लेकिन बूथ पर काम करने वाले कार्यकर्ता बहुत हैं।