सार

रोज सवेरे गूंजने वाली गौरैया की चहचहाट को वापस लाने के लिए कोशिशें शुरू हुईं और लोगों का समर्थन इस संस्था को मिला। शहर में कृत्रिम घोंसले लगाए गए। लोग छतों और चहारदीवारी पर दाना-पानी रखने लगे। कोशिशें रंग लाईं और रूठी गौरैया वापस लौटने लगी। अब जरूरत इस बात की है कि इन कोशिशों को जारी रखा जाए। इसीलिए हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है।

अनुज तिवारी

वाराणसी: चीं-चीं, चूं-चूं करती चिड़िया, फुर्र-फुर्र उड़ जाती चिड़िया, फुदक-फुदक कर गाना गाती, रोज सवेरे हमें जगाती..हम सबने बचपन में यह कविता कंठस्थ की होगी। नतीजा यह कि आंगन से चिड़ियों की चहचहाहट ही गायब हो गई थी लेकिन वीवंडर फाउंडेशन के पिछले 4 साल के प्रयास से गौरैया फिर से घर -आँगन को वापस आने लगी है। रोज सवेरे गूंजने वाली गौरैया की चहचहाट को वापस लाने के लिए कोशिशें शुरू हुईं और लोगों का समर्थन इस संस्था को मिला। शहर में कृत्रिम घोंसले लगाए गए। लोग छतों और चहारदीवारी पर दाना-पानी रखने लगे। कोशिशें रंग लाईं और रूठी गौरैया वापस लौटने लगी। अब जरूरत इस बात की है कि इन कोशिशों को जारी रखा जाए। इसीलिए हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है।

वीवंडर फाउंडेशन टीम का यही कहना है कि कंक्रीट में बदलते शहरों में गौरैया के प्राकृतिक वासस्थल खत्म होते जा रहे हैं। न अब आंगन रहे और न ही रोशनदान। हरियाली भी सिमटती जा रही है। ऐसे में कृत्रिम घोंसले लगाकर गौरैया को आसरा देने की मुहिम बीते कई सालों से की जा रही है। इसका परिणाम भी काफी अच्छा रहा है। इन घोंसलों को चिड़िया ने अपना आशियाना बना लिया है। अब जरूरत इस बात की है कि अब देश के अलग अलग जगहों पे गौरैया पार्क विकसित किए जाएं जिससे गौरैया संरक्षण किया जा सके।गौरैया ही एक ऐसी चिड़िया है जो घरों में परिवारजनों के साथ रहती है। हमारे नजदीक तक आती है, अंडे देती है और परिवार बढ़ाती है। यह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती और यही वजह है कि इसका कलरव घर में खुशियां लाता है।गौरैया संरक्षण की दिशा में बच्चों का रुझान बहुत ही सराहनीय रहा है ।लेकिन अब समय आ गया है कि बच्चे ही नही अब सभी आयुवर्ग के लोगों को आगे आना होगा और गौरैया को बचाने के लिए तेजी से कार्य करना होगा।बढ़ता प्रदूषण, आवास में कमी, पेड़ों की घटती संख्या और सब्जी पर अनाज में कीटनाशकों का इस्तेमाल गौरैया की संख्या के कमी के बड़े कारण हैं।

वीवंडर फाउंडेशन द्वारा गौरैया संरक्षण के क्षेत्र मे की गई पहल
वीवंडर फाउंडेशन की नींव 14 दिसंबर 2017 को रखी थी। जैसा कि नाम वीवंडर, जिसका अर्थ घुमक्कड़ होता है, घुमक्कड़ों की टीम जो अलग- अलग जगह घूम- घूम कर कुछ एक स्तर तक समस्याओं के निदान पर विचार कर उसे समाज में एक सार्थक रूप दे।

वीवंडर फाउंडेशन संस्था की नींव इस सोच के साथ शुरू की थी कि अपने व्यस्ततम निजी जिंदगी में से मात्र एक घंटे का समय निकाल कर समाज के कुछ समस्याओं का उद्धार करने प्रयास कर सकेंगे, संस्था का कोई भी सदस्य कही भी रहे कभी भी समाज के लिए एक घण्टे का समय निकाल सके। हालांकि संस्था उस सोच को लेकर आज परस्पर 4 वर्षों से आगे बढ़ रही है, संस्था के सभी सम्मानित सदस्यों ने अब इस सोच को देशब्यापी बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

संस्था का उद्देश्य वातावरण में पक्षियों और उनके आवास का संरक्षण करना है। पक्षी संरक्षण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता निरपेक्ष है, हम समानता पर विश्वास करते हैं, और संस्था का ऐसा मानना है कि पक्षी और उनके आवासों का संरक्षण मानव सहित अन्य सभी प्रजातियों को किसी ना किसी रूप में लाभ ही पहुंचाता है (पर्यावरण को सुशोभित करते हैं)। पिछले 4 वर्षों से हम गौरैया संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं। हमने लगभग 200 से अलग-अलग स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम सम्पन्नकिया है, और लकड़ी से बने लगभग 18000 से अधिक पक्षियों के घोंसले वितरित किया हैं। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में हमने विभिन्न स्थानों पर 23000 से अधिक पौधारोपण किया है। संस्था को गौरैया संरक्षण के लिए राष्ट्रीय गौरव पुरस्कार 2019 और विभिन्न संगठन से 12 अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा गया है।

लॉकडाउन के दौरान वीवंडर फाउंडेशन ने ऑनलाइन वर्कशॉप का आयोजन किया।संस्था ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से घोसले बनाने का प्रशिक्षण दिया। इस प्रशिक्षण के दौरान करीब हजारों लोग जुड़े।कोरोना लॉक डाउन की वजह से सारे स्कूल और कॉलेज बंद होने की वजह से संस्था ने जीवा नामक पत्रिका निकाला जिसके माध्यम से गौरैया पक्षी बचाओ अभियान किया जा सके।यह पत्रिका ऑनलाइन और सोशल मीडिया के माध्यम से लगभग 20 लाख लोगों तक पहुंचाई गई। दूरदर्शन द्वारा गौरैया बचाओ अभियान पर एक डॉक्यूमेंट्री भी सूट की गई।