सार

जापान के सम्राट नारूहितो ने शासक बनने की अंतिम रस्म निभाने के लिए  'देवी' के साथ रात गुजारी। इसके लिए उन्हें गुरुवार को एक मठ में लकड़ी के बने एक अंधेरे कमरे में छोड़ दिया गया, जहां उन्होने मशालों की रोशनी में प्रवेश किया। इस रस्म पर हो रहे करोड़ों के खर्चे को लेकर कम्युनिस्टों ने हंगामा मचा दिया है। 

हटके डेस्क। जापान के सम्राट नारूहितो ने शासक बनने की अंतिम रस्म निभाने के लिए 'देवी' के साथ रात गुजारी। इसके लिए उन्हें गुरुवार को एक मठ में लकड़ी के बने एक अंधेरे कमरे में छोड़ दिया गया, जहां उन्होने मशालों की रोशनी में प्रवेश किया। इस रस्म पर हो रहे करोड़ों के खर्चे को लेकर कम्युनिस्टों ने हंगामा मचा दिया है। बता दें कि यह रस्म 15 नवंबर को पूरी होगी। जापान में यह मान्यता है कि इस अनुष्ठान के दौरान देवी खुद सम्राट से मिलने आती हैं और उनके साथ रात गुजारती हैं। ऐसा माना जाता है कि जापान के सम्राटों और देवी के बीच वैवाहिक संबंध रहे हैं। जापान के सम्राट को सूर्य का वंशज माना गया है। इस रस्म अदायगी के बाद नारूहितो पूरी तरह से जापान के सम्राट बन जाएंगे। 59 वर्षीय नारूहितो 1 मई, 2019 को जापान के सम्राट बने थे। उनके पिता 85 वर्षीय अकिहितो एम्परर एमिरटस हैं। नारूहितो जापान के 126वें सम्राट हैं। 

सफेद कपड़ों में मठ में गए सम्राट
गुरुवार को शाम के समय इस अंतिम रस्म की शुरुआत हुई। जापान के स्थानीय समय के अनुसार शाम 7 बजे सफेद पोशाक पहने सम्राट ने मठ में प्रवेश किया। वहां वे एक दावत में शामिल हुए। इस दावत में ओक के पत्तों से बनी 32 प्लेटों में भोजन परोसे जाने की परंपरा है। इस दौरान देश की समृद्धि और शांति के लिए विशेष प्रार्थना की जाती है। माना जाता है कि इसी दौरान देवी आती हैं और दावत में शामिल होने के बाद वे सम्राट के साथ रात गुजारती हैं, जिसके बाद उन्हें सम्राट के रूप में पूरे अधिकार मिल जाते हैं। 

1000 साल पुरानी है यह परंपरा
जापानी सम्राटों के देवी के साथ रात गुजारने की यह परंपरा करीब 1000 साल पुरानी है। इसे डाइजोसाई कहते हैं। इस पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। इस बार इस रस्म से जुड़े समारोहों पर 1.7 बिलियन येन (25 मिलियन डॉलर) का खर्च आया है। यह राशि करीब 1 अरब, 97 लाख, 57 हजार रुपए होती है। इस भारी-भरकम खर्च को देखते हुए कई कम्युनिस्ट संगठन इसका बहुत विरोध कर रहे हैं और उन्होंने काफी हंगामा मचाया है। यही नहीं, ईसाई समुदाय के लोग और संगठन भी इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह अंधविश्वास है और हजारों साल पुरानी इस परंपरा को जारी रखना बेवकूफी है। उन्होंने इस परंपरा को बंद कराने के लिए मुहिम छेड़ रखी है।