सार

भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के अलावा कई धर्म हैं। इन धर्मों में जल्द ही एक नया नाम जुड़ने वाला है। इसके लिए झारखंड में मांग उठने लगी है। 

झारखंड: हाल ही में झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे निकले हैं। इसमें रघुवर दास को हार का सामना करना पड़ा और एक बार फिर हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने की राह साफ हुई। नतीजों के बाद अब राज्य में सरना कोड लागू करने की मांग उठ रही है। अगर इसे लागू कर दिया गया तो देश को सरना के नाम पर एक नया धर्म मिल जाएगा।  

क्यों उठ रही है मांग 
झारखंड विकास मोर्चा झामुमो के साथ नए सरकार में शामिल होने वाला है। झाविमो ने अपने घोषणा पत्र में सरना कोड का मुद्दा शामिल किया था। इसके बाद अब नई सरकार सरना कोड पर क्या फैसला लेगी, ये देखने की बात होगी। झारखंड में 32 जनजाति हैं जिनमें से आठ पीवीटीजी (परटिकुलरली वनरेबल ट्राइबल ग्रुप) हैं। यह सभी जनजाति हिंदू की ही कैटेगरी में आते हैं, लेकिन इनमें से जो ईसाई धर्म स्वीकार कर चुके हैं वे अपने धर्म के कोड में ईसाई लिखते हैं। झारखंड के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया कि यह भी एक कारण है कि आदिवासी समुदाय अपनी धार्मिक पहचान को बनाए रखने के लिए सरना कोड की मांग कर रहे हैं। 

क्या है सरना?
सरना धर्म झारखण्ड के आदिवासियों का आदि धर्म है। परन्तु प्रत्येक राज्य आदिवासी ये धर्म को अलग-अलग नाम से जानते है और मानते है अर्थात जब आदिवासी आदिकाल में जंगलों में होते थे। उस समय से आदिवासी प्रकृति के सारे गुण और सारे नियम को समझते थे और सब प्रकृति के नियम पर चलते थे। उस समय से आदिवासी में जो पूजा पद्धति व परम्परा विद्यमान थी वही आज भी क़ायम रखे है। सरना धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म है। सरना धर्म में पेड़, पौधे, पहाड़ इत्यादि प्राकृतिक सम्पदा की पूजा की जाती है। चुंकि आदिवासी प्रकृति पूजक है, प्रकृति पूजक सरना धर्म को 'आदि धर्म' भी कहा जाता रहा है। सरना धर्म आदिवासियों में "हो", "संथाल", "मुण्डा", "उराँव" , "कुड़मी महतो" इत्यादि खास तौर पर इसको मानते हैं। जानकारी के अभाव में सरना धर्म को छोड़ कर बहुत से आदिवासी लोग ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म अपना रहे हैं। जिससे जो कि आदिकाल से जिस परम्परा को मानते आ रहा है, उसे छोड़ने पर विवश हैं। सरना धर्म के अंदर अधिकतर परंपराएं प्रकृति पूजक मानी जाती है जिस प्रकार से सनातन धर्म में भी प्रकृति को पूजा जाता है, उसी प्रकार से सरना के अंदर भी आदिवासी लोग प्रकृति को पूजते हैं!