सार
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बुधवार को एक बयान जारी कर इस दावे को ग़लत और बेबुनियाद बताया। विदेश मंत्रालय ने ये भी कहा कि 1998 की जनगणना के आंकड़े ये भी बताते हैं कि पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 1951 में 1.5 प्रतिशत थी जो 1998 में बढ़कर तकरीबन 2 प्रतिशत हो गई।
इस्लामाबाद. भारत सरकार द्वारा लागू किए गए नागरिकता संशोधन कानून के बाद से पाकिस्तान भड़का हुआ है। गृहमंत्री अमित शाह द्वारा संसद में कानून पेश करने के दौरान पाकिस्तान, आफगानिस्तान और बांग्लादेश में गैर मुस्लिमों का धार्मिक उत्पीड़न होने और संख्या में गिरावट होने की बात कही गई थी। जिस पर पाक ने प्रतिक्रिया देते हुए शाह के दावे को खारिज किया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी में बढ़ोत्तरी हुई है।
पाकिस्तान ने दावा ख़ारिज किया
पाकिस्तान ने भारतीय गृह मंत्री के इस दावे को झूठा बताते हुए ख़ारिज कर दिया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बुधवार को एक बयान जारी कर इस दावे को ग़लत और बेबुनियाद बताया। विदेश मंत्रालय ने कहा, "1941 की जनगणना के आंकड़े देखेंगे तो साफ़ पता चलेगा कि भारत ने जानबूझकर और शरारतपूर्ण तरीके से 1947 के विभाजन और 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (आज के बांग्लादेश) के दौरान बड़े पैमाने पर हुए विस्थापन का ज़िक्र नहीं किया है। इन दोनों घटनाओं का पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी के प्रतिशत पर असर पड़ा है।"
अल्पसंख्यंकों की आबादी में हुई है बढोत्तरी
बयान में कहा गया है, "पाकिस्तान में 1951 की पहली जनगणना के मुताबिक पश्चिमी पाकिस्तान (आज के पाकिस्तान) में अल्पसंख्यकों की तादाद कुल आबादी का 3.1 प्रतिशत थी, जो 1998 तक बढ़ते हुए 3.71 प्रतिशत तक पहुंची। अलग-अलग जनगणनाओं में भी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 1961 की दूसरी जनगणना में अल्पसंख्यक आबादी 2.96 प्रतिशत थी, 1971 की जनगणना में 3.25 प्रतिशत, 1981 में 3.33 प्रतिशत और साल 1998 में हुई पाँचवीं जनगणना में 3.72 प्रतिशत पहुँच गई थी।" पाकिस्तान विदेश मंत्रालय ने ये भी कहा कि 1998 की जनगणना के आंकड़े ये भी बताते हैं कि पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 1951 में 1.5 प्रतिशत थी जो 1998 में बढ़कर तकरीबन 2 प्रतिशत हो गई।
शाह ने यह कहा था संसद में
संसद में कानून को पेश करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि "1950 में दिल्ली में नेहरू लियाक़त समझौता हुआ और इससे ये सुनिश्चित किया गया कि दोनों देश अपने-अपने देशों में अल्पसंख्यकों को खयाल रखेंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और ये समझौता धरा का धरा रह गया। पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश में राज्यधर्म इस्लाम है और इस तरह से वहाँ हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अल्पसंख्यक हैं। 1947 में पाकिस्तान के अंदर अल्पसंख्यकों की आबादी 23 प्रतिशत थी और साल 2011 में 23 प्रतिशत से कम होकर 3.7 प्रतिशत रह गई."
क्या है नागरिकता संशोधन कानून
दरअसल, इस कानून में तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए ग़ैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक समूहों को नागरिकता प्रदान करने का निर्णय है। इसके तहत भारत में अवैध रूप से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अगर यह साबित कर सकते हैं कि वो पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आए हैं तो वे नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। भारत सरकार का तर्क है कि इन तीन देशों में अल्पसंख्यकों की संख्या में लगातार कमी आ रही है और वे मज़हब के आधार पर उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। संसद में इसे भेदभावपूर्ण बताते हुए इसकी आलोचना की गई क्योंकि यह इन देशों के अन्य अल्पसंख्यक समूहों को नागरिकता नहीं प्रदान करेगा।