एक UK रिसर्च ने हिटलर के DNA की जांच की। 4 साल की स्टडी के अनुसार, उसे 'कॉलमैन सिंड्रोम' नामक जेनेटिक बीमारी थी। हालांकि, इन नतीजों की वैज्ञानिक समीक्षा नहीं हुई है और इनकी प्रामाणिकता सिद्ध नहीं है।

क रिसर्च टीम ने एडॉल्फ हिटलर के माने जाने वाले डीएनए सैंपल की जांच रिपोर्ट जारी की है। 'हिटलर्स डीएनए: ब्लूप्रिंट ऑफ ए डिक्टेटर' नाम की इस डीएनए जांच के नतीजों वाली डॉक्यूमेंट्री को यूके के चैनल 4 पर दिखाया गया। इस रिसर्च की अगुवाई यूके की बाथ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और जेनेटिक साइंटिस्ट टोरी किंग ने की, जिसे पूरा करने में चार साल लगे। उनकी स्टडी 1945 में हिटलर के बंकर में मिले सोफे के एक हिस्से पर लगे खून के धब्बे और हिटलर के एक रिश्तेदार के खून के डीएनए सैंपल की तुलना पर आधारित थी, जहां उसने खुद को गोली मारकर जान दे दी थी।

कॉलमैन सिंड्रोम

डीएनए जांच से मिले संकेतों के मुताबिक, हिटलर को 'कॉलमैन सिंड्रोम' नाम की एक जेनेटिक बीमारी थी। इसके साथ ही, उन्होंने मुख्य रूप से यह भी जांचा कि क्या हिटलर का कोई यहूदी वंश था और क्या उसे कोई ऐसी जेनेटिक बीमारी थी जो मानसिक समस्याओं का कारण बन सकती है। डॉक्यूमेंट्री में शेयर किए गए इन नतीजों की अभी तक इस क्षेत्र के दूसरे वैज्ञानिकों ने समीक्षा नहीं की है और न ही इसे किसी साइंटिफिक जर्नल में छापा गया है। इसलिए, इस जानकारी की प्रामाणिकता की अभी पूरी तरह से पुष्टि नहीं हुई है।

डॉक्यूमेंट्री में एक खास बात यह बताई गई है कि हिटलर में जीन म्यूटेशन हुआ था। खोज के अनुसार, जीन में इस बदलाव ने 'कॉलमैन सिंड्रोम' और 'कंजेनिटल हाइपोगोनाडोट्रोपिक हाइपोगोनाडिज्म' को जन्म दिया। यह एक ऐसी स्थिति है जो पुरुषों में यौवन आने में देरी करती है और अंडकोष के विकास को प्रभावित करती है। इसका मुख्य लक्षण टेस्टोस्टेरोन का लेवल कम होना है। यह या तो यौवन न आने या आंशिक यौवन की ओर ले जाता है।

क्रिप्टोर्चिडिज्म

किंग अपनी खोज को सही साबित करने के लिए कई ऐतिहासिक घटनाओं को एक साथ जोड़कर देखते हैं। इसका एक उदाहरण 1923 के असफल म्यूनिख बीयर हॉल विद्रोह के बाद हिटलर के जेल में रहने का एक मेडिकल रिकॉर्ड है। किंग बताते हैं कि इस मेडिकल रिकॉर्ड के अनुसार, हिटलर को 'क्रिप्टोर्चिडिज्म' नाम की एक स्थिति थी, जिसमें अंडकोष, अंडकोश की थैली में नहीं उतरता है। डॉक्यूमेंट्री में शामिल इतिहासकार और लेक्चरर डॉ. एलेक्स के कहते हैं कि हिटलर को कोलमैन सिंड्रोम होने की खोज उनके लिए ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। उनका कहना है कि यह जानकारी हिटलर के व्यक्तिगत संबंधों की कमी के कारणों को समझाने में मदद कर सकती है। वे यह भी बताते हैं कि शायद इन्हीं कारणों से हिटलर ने अपनी निजी जिंदगी को महत्व न देकर अपना पूरा समय राजनीति में लगा दिया।

क्या हिटलर का यहूदी वंश था? इस सवाल पर रिसर्चर्स का 'नहीं' में जवाब एक और ध्यान देने वाली बात है। एक और खोज यह है कि हिटलर को कई न्यूरोलॉजिकल और जेनेटिक समस्याएं थीं। डीएनए जांच से उन्होंने पाया है कि हिटलर को सिज़ोफ्रेनिया, अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी और ऑटिज्म जैसी स्थितियां थीं। वे पॉलीजेनिक स्कोर के साथ जीन की तुलना करके इस नतीजे पर पहुंचे हैं।

दूसरा पक्ष

लेकिन, वैज्ञानिक समुदाय से यह भी आरोप लग रहे हैं कि किसी व्यक्ति की ऐसी स्थितियों का पता सिर्फ डीएनए जांच से नहीं लगाया जा सकता और बिना सबूत के ऐसे जेनेटिक दावे गलत हैं। रिसर्चर्स का यह भी कहना है कि सिज़ोफ्रेनिया का पता केवल मनोवैज्ञानिक जांच से ही लगाया जा सकता है। इन कारणों से, किंग की खोज फिलहाल अधूरी बनी हुई है। वे यह भी तर्क देते हैं कि दुनिया के सबसे बड़े तानाशाह की जेनेटिक और मानसिक बीमारियों का अध्ययन उसके द्वारा दुनिया पर किए गए अत्याचारों की गंभीरता को कम नहीं करेगा, और ऐसी कोशिशों को स्वीकार नहीं किया जा सकता।