सार

एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने बताया कि भारत कैसे सूडान में फंसे भारतीय नागरिकों को रेस्कयू कर रहा है और कौन सा देश भारत की मदद कर रहा है?

 

नई दिल्ली: अफ्रीकी देश सूडान (Sudan) में गृहयुद्ध जारी है। वहां के हालात हर रोज बिगड़ते जा रहे हैं। इस बीच भारत 'ऑपरेशन कावेरी' (India Operation Kaveri) के जरिए अपने नागरिकों को वापस ला रहा है। सूडान से अब तक कुल 1360 भारतीय नागरिकों को देश वापस लाया जा चुका है। शुक्रवार को कुल 754 नागरिक भारत पहुंचे। हालांकि, यह मिशन इतना आसान नहीं था। नागरिकों को सूडान से बाहर निकालने के लिए सऊदी अरब, भारत की सहायता कर रहा है।

एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा कि सीजफायर के दौरान भी कई जगहों में झड़पें होती रहीं। इन खतरों के बावजूद भारतीय दूतावास हमारे लोगों को खार्तूम से पोर्ट सूडान ले गया। इसके बाद उन्हें पोर्ट सूडान से इन लोगों को सऊदी अरब के जेद्दाह ले जाया गया। बता दें कि भारत ने जेद्दाह में ट्रांजिट पॉइंट बनाया है।

सऊदी अरब कर रहा है भारत की मदद

केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा कि भारत और सूडान के बीच मजबूत संबंध हैं। रेस्क्यू ऑपरेशन में इसने अच्छी भूमिका निभाई है। उन्होंने बताया, "सऊदी अरब के जेद्दाह में एक कंट्रोल रूम बनाया गया है। भारतीय वायुसेना के विमान जेद्दाह में किंग अब्दुल्ला एयर बेस में खड़े हैं। वे पिछले चार दिनों से वहां से काम कर रहे हैं। निश्चित रूप से सऊदी अधिकारी हमारे साथ को-ऑपरेट कर रहे हैं। वे हमारी देखभाल, खाने-पीने और इमिग्रेशन प्रक्रियाओं में मदद कर रहे हैं।"

क्यों हो रहा सूडान में संघर्ष?

गौरतलब है कि सूडान में मिलिट्री और पैरामिलिट्री के बीच लड़ाई चल रही है। इस विवाद की शुरुआत 2019 में सूडान के तत्कालीन राष्ट्रपति ओमर अल-बशीर के तख्तापलट के बाद हुई थी। दरअसल, तख्तापलट के बाद वहां के लोग लोकतांत्रिक शासन और सरकार में अपनी भूमिका की मांग करने लगे। इसके बाद सूडान में एक ज्वाइंट सरकार का गठन हुआ, जिसमें देश के नागरिक और मिलिट्री दोनों का रोल था।

सूडान में चुनाव को लेकर विवाद

सरकार में आर्मी चीफ जनरल अब्देल फतह अल-बुरहान देश के राष्ट्रपति और RSF लीडर मोहम्मद हमदान डागालो उपराष्ट्रपति बन गए। हालांकि, दोनों के बीच आम चुनाव को लेकर विवाद बढ़ गया। सूडान की आर्मी चाहती है कि 2 साल बाद वहां चुनाव करवाकर सत्ता जनता की चुनी हुई सरकार को सौंप दी जाए। वहीं, आरएसएफ चाहती है चुनाव 10 साल बाद हों। इसी को लेकर दोनों के बीच बवाल हो गया है।

सेना के इंटिग्रेशन पर बवाल

इसके अलावा बवाल की एक और वजह ‘आरएसएफ’ के सेना में विलय को भी माना जा रहा है। दोनों के बीच इस बात को लेकर भी सहमति नहीं बन पाई है कि अगर आरएसएफ का सेना में विलय हो जाता है तो फिर नई सेना का नेतृत्व कौन करेगा।

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