सार
कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप भारत पर लगाकर दोनों देशों के रिश्तों को बेहद खराब कर दिया है। अब सबकी नजर अमेरिका पर है कि उसका क्या रुख होता है।
वाशिंगटन। खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर (Hardeep Singh Nijjar) हत्याकांड में भारतीय एजंटों के हाथ होने का आरोप लगाकर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने दोनों देशों के संबंधों को बिगाड़ दिया है। ट्रूडो ने भारत के खिलाफ मोर्चा खोला है और अपने सहयोगी देशों से भी साथ देने का आह्वान कर रहे हैं।
अब सबकी नजर अमेरिका पर है। कनाडा अमेरिका का महत्वपूर्ण सहयोगी है। वहीं, अमेरिका और भारत के संबंध भी बेहद प्रगाढ़ हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि अगर अमेरिका को कनाडा या भारत में से किसी एक का साथ देना हो तो उसका रुख क्या होगा। द नेशनल इंटरेस्ट में प्रकाशित माइकल रुबिन के लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है। रुबिन अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट में वरिष्ठ फेलो हैं।
भारत को नाराज करने से सावधान है बाइडेन प्रशासन
रुबिन ने लिखा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ट्रूडो के भारत विरोधी जाल में फंसने वाले नहीं हैं। बाइडेन प्रशासन ने इस मामले में कनाडा को फटकार नहीं लगाया है। वहीं, वह भारत को नाराज करने से सावधान भी है। ट्रूडो को तत्काल समर्थन देने से बचना बाइडेन के लिए सही है।
पहली बात यह है कि खुद निज्जर को लेकर परेशानी है। कनाडाई कह सकते हैं कि वह तो बस एक प्लंबर था जो राजनीतिक कार्यकर्ता भी था, लेकिन वास्तविकता अधिक जटिल है। निज्जर 22 साल भारत में रहा। इस दौरान उसने अलगाववादी समूह खालिस्तान टाइगर फोर्स ज्वाइन किया। इसने भारत के पंजाब प्रांत में विद्रोह किया।
फर्जी पासपोर्ट लेकर कनाडा गया था निज्जर
1997 में निज्जर कथित तौर पर रवि शर्मा नाम के फर्जी पासपोर्ट का इस्तेमाल कर कनाडा भाग गया। टोरंटो हवाई अड्डे पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। उसने भारत में कथित पुलिस उत्पीड़न के आधार पर शरण मांगी। कोर्ट ने उनके शरण के दावे को खारिज कर दिया, लेकिन फिर उसने एक कनाडाई महिला से शादी के आधार पर नागरिकता की मांग की। इमिग्रेशन अधिकारियों ने शुरू में इसे भी अस्वीकार कर दिया। इस संदेह के आधार पर कि शादी नकली थी, लेकिन अपील पर कनाडा सरकार ने उसे नागरिकता और पासपोर्ट दे दिया।
2015 में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने निज्जर की मदद से ब्रिटिश कोलंबिया के पास खालिस्तान आतंकवादियों के लिए एक प्रशिक्षण शिविर स्थापित किया था। भारत ने निज्जर पर कई आतंकी वारदातों में शामिल होने का आरोप लगाया है। इसमें 2007 में लुधियाना सिनेमाघर पर बमबारी की योजना बनाना, 2009 में प्रमुख सिख राजनेता रूलदा सिंह की हत्या, जालंधर में हिंदू धर्मगुरु कमलदीप शर्मा की हत्या की साजिश, 2010 में पटियाला में एक मंदिर में विस्फोट समेत कई हत्याएं शामिल हैं।
कनाडा ने खून सने हाथ वाले व्यक्ति को दी शरण
कनाडा ने जानबूझकर एक ऐसे व्यक्ति को शरण दी, जिसके हाथों पर बहुत सारा खून लगा होने का संदेह था। सिख उग्रवाद के प्रति कनाडा की सहिष्णुता से भारत का परेशान होना सही है। कनाडा न केवल खालिस्तान टाइगर फोर्स को पनाह देता है, बल्कि यह विश्व सिख संगठन, सिख फॉर जस्टिस और बब्बर खालसा इंटरनेशनल की भी मेजबानी करता है। भारतीय अधिकारियों का कहना है कि ये सभी समूह हिंसा को बढ़ावा देते हैं और विदेशी शक्तियों से संबंध रखते हैं।
अगर क्यूबेकॉइस फ्रिंज ने फैसला किया कि क्यूबेक राष्ट्रवाद के लक्ष्य को आगे बढ़ाने का उचित तरीका राजनेताओं की हत्या करना और सिनेमाघरों पर बमबारी करना है। यदि ऐसे आतंकवादियों ने भारत में अड्डा जमाया होता तो कनाडा की बयानबाजी बहुत अलग होगी।
यह काल्पनिक हो सकता है, लेकिन हिंसा के प्रति ट्रूडो के दृष्टिकोण में विसंगतियां वास्तविक हैं। टोरंटो में पाकिस्तानी मानवाधिकार कार्यकर्ता करीमा बलोच की हत्या कर दी गई थी। टोरंटो में हत्या कर दी गई पाकिस्तानी मानवाधिकार कार्यकर्ता करीमा बलोच की मौत पर विचार करें। कैनेडियन पुलिस ने मामले की जांच की थी। इसमें पाकिस्तानी सरकार की मिलीभगत की जानकारी मिली, लेकिन ट्रूडो चुप रहे। ऐसा लग रहा है कि कनाडाई अपनी धरती पर अंतर-सिख हिंसा के लिए भारत को दोषी ठहराते हैं।
निज्जर की मौत पहले की हत्या का प्रतिशोध हो सकती है। जुलाई 2022 में दो बंदूकधारियों ने वैंकूवर में एक प्रमुख सिख रिपुदमन सिंह मलिक की हत्या कर दी थी। इसपर एयर इंडिया की फ्लाइट में बम विस्फोटों का आरोप लगा था, लेकिन बरी कर दिया गया था। निज्जर के समूह ने अन्य सिख हस्तियों की अनुमति के बिना श्री गुरु ग्रंथ साहिब की छपाई का विरोध किया था। रिपुदमन की हत्या से कुछ ही दिन पहले निज्जर ने सिखों के एक समूह के नेतृत्व में उसके एक स्कूल पर धावा बोल दिया और उसकी प्रिंटिंग प्रेस पर कब्जा कर लिया था।
ट्रूडो नहीं दिखा पाएं हैं कोई सबूत
क्या भारतीय एजेंट निज्जर की हत्या कर सकते थे? वर्तमान परिदृश्य में ऐसा प्रतीत नहीं होता है। सऊदी एजेंटों द्वारा इस्तांबुल में जमाल खशोगी की हत्या की गई थी। इस संबंध में तुर्की ने अपने दावों के समर्थन में सबूत उपलब्ध कराए थे। ट्रूडो ऐसा करने में असमर्थ हैं। इससे पता चलता है कि हो सकता है कि उन्होंने जांच का राजनीतिकरण कर दिया हो। संभव है ट्रूडो ने राजनीति लाभ के लिए ये आरोप लगाए हों।
अमेरिकी राजनेता भी यही काम करते हैं। डोनाल्ड ट्रम्प ने मेक्सिको को सीमा पर दीवार बनाने के लिए भुगतान करने का वादा किया था। बराक ओबामा के राष्ट्रपति रहने के दौरान जो बाइडेन ने जॉर्ज डब्लू. बुश की विदेश नीति की आलोचना के लिए अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई के खिलाफ उग्र रुख अपनाया था। ओबामा प्रशासन के एक सीनियर अधिकारी ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को अपशब्द कहा था, जिससे अमेरिकी-इजरायल विवाद बढ़ गया था। प्रत्येक मामले में घरेलू राजनीति के लिए की गई बयानबाजी अंतरराष्ट्रीय घटना में तब्दील हो गई।
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भारत के खिलाफ ट्रूडो का रुख संभवतः अलग नहीं है। अमेरिका और भारत संबंध बहुत मजबूत हैं। इसे एक कनाडाई राजनेता की दुष्टता के लिए बलिदान नहीं किया जा सकता। वह भी ऐसा नेता जो तेजी से खुद को उथला और अगंभीर दिखाता है।