मिडिल-ईस्ट के देशों में इजराइल के लगातार बढ़ते हमलों और अमेरिका पर घटते भरोसे की वजह से मुस्लिम देश NATO की तर्ज पर अब एक 'इस्लामिक नाटो' बना सकते हैं।  इसकी झलक पाकिस्तान-सऊदी अरब के बीच हालिया सुरक्षा समझौते में देखने को भी मिली। 

Islamic NATO: कुछ दिनों पहले इजराइल ने कतर पर हमला किया था, जिसको लेकर तमाम इस्लामिक देशों ने नाराजगी जताई थी। इस पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से माफी भी मंगवा दी। साथ ही कतर को ये भरोसा भी दिलाया कि उसकी सुरक्षा पर अब कोई हाथ नहीं डालेगा। ट्रंप ने कतर को भले ही इतना बड़ा आश्वासन दिया है, लेकिन पिछले कुछ सालों में मिडिल ईस्ट की घटनाओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि खाड़ी देशों में अमेरिका को लेकर भरोसा कम हुआ है। यही वजह है कि अब माना जा रहा है कि दुनियाभर के तमाम देश मिलकर NATO की तर्ज पर 'इस्लामिक नाटो' बना सकते हैं।

इस्लामिक नाटो में कौन-कौन हो सकता है शामिल?

विदेशी मामलों के एक्सपर्ट्स की मानें तो दुनियाभर के कई मुस्लिम देश मिलकर NATO जैसा संगठन बना सकते हैं। इसमें पाकिस्तान के अलावा सऊदी अरब, ईरान और तुर्की जैसे बड़े इस्लामिक देश आ सकते हैं। ईरान पहले भी इस तरह के गठबंधन में शामिल होने की इच्छा जाहिर कर चुका है।

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क्यों पड़ी इस्लामिक नाटो बनाने की जरूरत?

इजराइल मिडिल-ईस्ट के अलग-अलग देशों पर लगातार हमले कर रहा है। गाजा में हमास जैसे आतंकी संगठन को जड़ से मिटाने की कोशिश में नेतन्याहू ने उससे जुड़े एक-एक इस्लामिक देश पर हमला बोला। इजराइल ने लेबनान, ईरान, यमन, सीरिया और कतर जैसे देशों पर भी अटैक किया। बावजूद इसके इजराइल का कोई बाल भी बांका नहीं कर सका। इन घटनाक्रमों के बाद अमेरिका को लेकर भरोसा कम होता जा रहा है। ऐसे में इस्लामिक उम्माह को अब एक होने के लिए इस तरह के संगठन की जरूरत नजर आ रही है।

भारत के लिए क्या होंगी चुनौतियां?

अगर भविष्य में ऐसा कोई संगठन उभरकर सामने आता है तो मिडिल ईस्ट में पावर बैलेंस पूरी तरह पलट सकता है। इसके चलते भारत के सामने कई तरह के नए जियो-पॉलिटिकल चैलेंजेस खड़े हो सकते हैं। पाकिस्तान की परमाणु ताकत इस्लामिक नाटो की पावर को बूस्ट दे सकती है, जिससे रीजनल पावर बैलेंस और कठिन हो जाएगा।

कहां दिखी 'इस्लामिक नाटो' की झलक

सितंबर, 2025 में पाकिस्तान ने सऊदी अरब के साथ मिलकर एक सुरक्षा समझौता किया है। इसके तहत दोनों देश इस बात को लेकर सहमत हुए हैं कि किसी भी एक पर हुआ हमला, दूसरे पर माना जाएगा और उसके देखते हुए एक्शन लिया जाएगा। बता दें कि ये नाटो की नीति है, जिसके तहत उसमें शामिल किसी भी सदस्य देश पर किया गया हमला पूरे संगठन पर माना जाता है। इसके बाद उसके खिलाफ सारे देश मिलकर हमला करते हैं।

क्या है NATO?

नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसका नेतृत्व अमेरिका के हाथों में है। इसकी स्थापना 4 अप्रैल 1949 को उत्तरी अमेरिका और यूरोप के 12 देशों (बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूके और अमेरिका) ने मिलकर की थी। वर्तमान में इसके 32 सदस्य देश हैं। 7 मार्च 2024 को स्वीडन इस गठबंधन में शामिल होने वाला सबसे नया मेंबर बना।

नाटो का क्या है उद्देश्य?

NATO के आर्टिकल 5 के तहत, अगर एक सदस्य देश पर कोई हमला होता है, तो उसे सभी सदस्य देशों पर हमला माना जाएगा। इसके बदले में सभी देश मिलकर उसकी मदद करेंगे। नाटो के पास अपनी कोई सेना नहीं है, बल्कि इसके सभी सदस्य देश संकट के समय सामूहिक सैन्य कार्रवाई के लिए कमिटेड हैं।

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