सार

Nazanin Zaghari-Ratcliffe news : ईरान की राजधानी तेहरान में कैद में छह साल बिताने के बाद नाजनीन जगारी -रैटक्लिफ ब्रिटेन में अपने घर वापस आ गईं। उन्हें पहली बार में क्यों गिरफ्तार किया गया था और इसका ब्रिटेन द्वारा ईरान पर 400 मिलियन पाउंड के कर्ज से क्या लेना-देना है? इसको लेकर अलग-अलग बातें होती रही हैं। जानें क्यों हुई थी उनकी गिरफ्तारी और कर्ज से इसका क्या लेना देना था। 

लंदन। ईरान की राजधानी तेहरान में कैद में छह साल बिताने के बाद नाजनीन जगारी -रैटक्लिफ (Nazanin Zaghari-Ratcliffe) ब्रिटेन में अपने घर वापस आ गईं। उन्हें पहली बार में क्यों गिरफ्तार किया गया था और इसका ब्रिटेन द्वारा ईरान पर 400 मिलियन पाउंड के कर्ज से क्या लेना-देना है? इसको लेकर अलग-अलग बातें होती रही हैं। उन्होंने अपनी आजादी के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। कैद के दौरान उन्हें बेहद क्रूर तरीके से यातनाएं दी गईं। यहां तक कि पागलखाने तक में रखा गया। अब वह लड़ाई जीत चुकी हैं। जानें उनकी लड़ाई से जुड़ी 10 बड़ी बातें...  

1- तेहरान में हुआ था जन्म
नाजनीन जगारी रैटक्लिफ का जन्म तेहरान में हुआ था। उन्होंने ब्रिटिश नेशनल रिचर्ड रैटक्लिफ से शादी से पहले एक अंग्रेजी टीचर के रूप में काम किया। इसके बाद वह लंदन चली गईं। 43 वर्षीय जगारी-रैटक्लिफ, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन में प्रोजेक्ट मैनेजर थीं, जो मीडिया और डेटा एजेंसी की शाखा है। उन्हें 3 अप्रैल, 2016 को तेहरान हवाई अड्डे पर ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने गिरफ्तार किया था। उन पर इस्लामिक देश में शासन को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था, जिसका उन्होंने खंडन किया था।

2- ईरान की अदालत ने सुनाई पांच साल की सजा
ईरानी-ब्रिटिश नागरिक रैटक्लिफ को 3 अप्रैल 2016 को हिरासत में ले लिया गया था। उनके खिलाफ ईरान की इस्लामिक सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने के आरोप थे। इसके बाद उन्हें पांच साल की सजा सुनाई गई। उस वक्त उनकी बेटी महज 22 महीने की थी।
 
3- 45 दिन नहीं मिली कानूनी मदद
तेहरान एयरपोर्ट से हिरासत में लेने के बाद 45 दिन तक उन्हें किसी तरह की कानूनी सहायता नहीं मिली। बाद में उनके पति ने उनकी रिहाई के लिए लड़ाई शुरू की। टीवी चैनलों और टॉक शो के जरिये उन्होंने पत्नी की सच्चाई को दुनिया के सामने रखा।  

4- आंखों में पट्‌टी बांधी गई, सोने नहीं दिया 
रैटक्लिफ को ईरान की क्रूर अदालतों ने सजा सुनाई, उन्हें जंजीरों में जकड़कर और आंखों पर पट्टी बांधकर रखा गया। वह काफी समय तक अकेली रहीं। इस दौरान उन्हें तेज रोशनी और शोर पैदा करके सोने नहीं दिया गया। 

5- मेंटल वार्ड में बिस्तर से बांधकर रखा
रैटक्लिफ जेल में रहने के दौरान भूख हड़ताल पर भी रहीं। 2019 में इसी के चलते उन्हें अस्पताल के मेंटल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। इस दौरान उन्हें बिस्तर से बांधकर रखा गया। उनकी रिहाई के लिए अपने घर से हजारों मील दूर उनके पति रिचर्ड ने कई भूख हड़तालों, विरोध प्रदर्शनों और सैकड़ों मीडिया इंटरव्यू में हिस्सा लिया। इस दौरान उनकी बेटी अपनी दादी के साथ रही।  

6- परिवार ने कहा था कर्ज है मुख्य वजह 
जगारी के परिवार ने कहा है कि उनका मानना ​​​​है कि जब तक कि ब्रिटेन और ईरान के बीच कर्ज का निपटारा नहीं हो गया उन्हें एक राजनीतिक कैदी के रूप में रखा जा रहा था। 
ब्रिटेन ने जानबूझकर यह कहने से परहेज किया है कि नाजनीन जगारी-रैटक्लिफ और ईरान में अन्य राजनीतिक कैदियों की नजरबंदी को ऋण से जोड़ा गया था। जिसे 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद रद्द कर दिया गया था।

7- रिहाई के बाद ब्रिटेन ने कहा- मुद्दा हल हो गया
रैटक्लिफ की रिहाई की घोषणा के तुरंत बाद, ब्रिटिश विदेश सचिव लिज ट्रस ने पुष्टि की कि लंदन और तेहरान ने अत्यधिक जटिल और विस्तृत बातचीत के बाद 394 मिलियन यूरो के मुद्दे को हल कर लिया है।  

8- ईरान ने भी की पैसे मिलने की पुष्टि
ईरान के विदेश मंत्री होसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन ने भी पुष्टि की कि ईरान को पैसा मिला था लेकिन उन्होंने कहा कि "इन लोगों की रिहाई के लिए ईरान को अपने ऋण प्राप्त करने से जोड़ना गलत था।

9- छह साल बाद परिवार से मुलाकात
ब्रिटिश सांसद ट्यूलिप सिद्दीक के अनुसार, 14 मार्च को नाजनीन जगारी-रैटक्लिफ को उनका यूके का पासपोर्ट वापस दे दिया गया था। जगारी-रैटक्लिफ को 6 साल बाद 17 मार्च को अपने परिवार का साथ फिर से मिला। उन्होंने ईरान से ओमान और अंत में यूनाइटेड किंगडम के लिए उड़ान भरी।

10- टैंकों के लिए लिया था पैसा, नहीं की थी डिलीवरी
ईरान की समाचार एजेंसी फार्स ने कहा है कि जगारी-रैटक्लिफ को तब रिहा किया गया जब ब्रिटेन ने अपना पुराना कर्ज चुका दिया। ईरानी शासकों का कहना है कि ब्रिटेन पर देश के पूर्व सम्राट यानी शाह का 40 करोड़ पाउंड यानी लगभग 40 अरब रुपए का कर्ज बकाया था। यह धन ब्रिटेन ने 1,750 टैंकों और अन्य वाहनों के लिए लिया था, लेकिन 1979 की क्रांति के बाद इन वाहनों की डिलीवरी नहीं की गई।

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