सार

पाकिस्तान में 12 जुलाई, 1997 का जन्मीं मलाला दुनियाभर में लड़कियों के साहस की एक मिसाल हैं। उन्हें यह पुरस्कार 17 साल की उम्र में भारत के बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी के साथ सामूहिक तौर पर मिला था।

काबुल. अफगानिस्तान में तालिबान के आतंक को लेकर भले ही दुनिया चुप बैठी है, लेकिन नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई का मुंह सिलकर रखना लोगों को हैरान कर रहा है। वे सोशल मीडिया पर ट्रोल हो रही हैं। अफगानिस्तान में जारी युद्ध को लेकर अब अमेरिका तक चुप है। लेकिन कभी तालिबान से लड़ने वालीं नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला युसूफजई की खामोशी उन्हें अपना आइडल मानने वालों को अखरने लगी है। सोशल मीडिया पर वे ट्रोल हों रही हैं।

मलाला क्या तालिबान से डर गई?
सोशल मीडिया पर मलाला के खामोशी को उनके डर से जोड़कर देखा जा रहा है। twitter पर उन्हें ट्रोल किया जा रहा है। एक ने लिखा-तालिबान ने गोली मार दी, बच गया। महिला शिक्षा के लिए कार्यकर्ता बनीं, पाकिस्तान छोड़ दिया। सबसे कम उम्र का नोबेल पुरस्कार विजेता। वोग के कवर पेज पर छपी एक किताब लिखी। खुद को ऑक्सफोर्ड में मिला। सब कुछ भुना लिया। लेकिन तालिबान/पाकिस्तान में महिलाओं की स्थिति के खिलाफ कभी एक शब्द भी नहीं बोला। सबसे बड़ा धोखा।

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अफगानिस्तान में तालिबान का आक्रमण तेज हो गया है। क्रूर हिंसा और सामूहिक विस्थापन के साथ, मलाला अपने गृह देश, पाकिस्तान के पड़ोसी देश में जो कुछ भी हो रहा है, उससे बेपरवाह और बेपरवाह लगती है। मलाला की ओर से अफगानिस्तान और तालिबान पर एक भी पोस्ट नहीं किया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि उसने इस तथ्य को स्वीकार करने से भी इनकार कर दिया है कि तालिबान लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई अफगान सरकार को लगातार छल रहा है और संघर्षग्रस्त देश में अपना वर्चस्व स्थापित कर रहा है।

किताब को लेकर हुआ था बवाल
पाकिस्तान में 12 जुलाई, 1997 का जन्मीं मलाला दुनियाभर में लड़कियों के साहस की एक मिसाल हैं। पाकिस्तान में उसके खिलाफ सरकार और लोगों के स्तर पर विरोध चल रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता मलाला युसूफजई को पाकिस्तान की एक महत्वूपर्ण शख्सियत बताने पर वहां की पंजाब सरकार नाराज हो गई थी। सरकार ने PCTB की उस किताब को जब्त कर लिया है, जिसमें मलाला की तस्वीर छापी गई है।

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वहीं, मलाला पर बनाई गई एक डाक्यमेंट्री का भी कट्टरपंथी विरोध कर रहे थी। बता दें कि मलाला सबसे कम उम्र की नोबेल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें यह पुरस्कार 17 साल की उम्र में भारत के बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी के साथ सामूहिक तौर पर मिला था। उन्हें पश्चिम पाकिस्तान के प्रांत खैबर पख्तूनख्वा की स्वात घाटी में महिलाओं और बच्चों की शिक्षा और मानवाधिकार की लड़ाई लड़ने वालों में जाना जाता है।