सार

रूस ने 47 साल बाद अपना मून मिशन (Russian moon mission) लॉन्च किया है। रूस के सोयुज 2.1v रॉकेट ने लूना-25 यान को अंतरिक्ष में पहुंचाया। यह 21 अगस्त को चंद्रमा पर लैंड करेगा।

मॉस्को। भारत के साथ रेस लगाते हुए रूस ने 47 साल बाद अपना मून मिशन (Russian moon mission) लॉन्च किया है। शुक्रवार को रूस ने लूना-25 नाम के अंतरिक्ष यान को लॉन्च किया। यह भारत के चंद्रयान 3 की तरह चंद्रमा के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। लूना-25 एक साल तक चंद्रमा की सतह पर खोजबीन करेगा। इस दौरान पानी की तलाश की जाएगी।

1976 के बाद रूस का यह पहला मून मिशन है। रूस के सोयुज 2.1v रॉकेट ने लूना-25 यान को अंतरिक्ष में पहुंचाया। रूस की अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस ने इसकी पुष्टि की है। रोस्कोस्मोस ने बताया है कि लूना-25 यान 21 अगस्त को चंद्रमा पर लैंड करेगा। इससे पहले लूना-25 के 23 अगस्त को चंद्रमा पर लैंड करने की बात की गई थी। 23 अगस्त को चंद्रयान-3 चंद्रमा पर लैंडिंग करने वाला है।

 

 

छोटे कार जितना बड़ा है लूना-25
अंतरिक्षयान लूना-25 करीब एक छोटी कार जितना बड़ा है। यह चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर करीब एक साल तक खोजबीन करेगा। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर हाल के वर्षों में नासा और अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों के वैज्ञानिकों ने पानी के निशान का पता लगाया है। रूस के मून मिशन का मुख्य उद्देश्य पानी की तलाश है।

चंद्रमा पर सबसे पहले अमेरिका के नील आर्मस्ट्रांग ने रखा था कदम

चंद्रमा पर पहुंचने की रेस नई नहीं है। अमेरिका ने सबसे पहले चंद्रमा पर इंसान भेजा था। अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग को 1969 में चंद्रमा पर चलने वाले पहले व्यक्ति के रूप में प्रसिद्धि मिली था। सोवियत संघ का लूना-2 चंद्रमा की सतह पर पहुंचने वाला पहला अंतरिक्ष यान था। इसे 1959 में लॉन्च किया गया था। 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद से रूस ने पृथ्वी की कक्षा से बाहर अपना अंतरिक्ष यान नहीं भेजा था।

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अब तक नहीं हुई है सॉफ्ट लैंडिंग
अमेरिका, चीन, भारत, जापान और यूरोपीय संघ जैसी प्रमुख शक्तियां हाल के वर्षों में चंद्रमा की जांच कर रही हैं। पिछले साल एक जापानी चंद्र लैंडिंग विफल रही। 2019 में एक इजरायली मिशन विफल रहा था। किसी भी देश ने दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग नहीं की है। 2019 में भारत का चंद्रयान -2 चंद्रमा पर नहीं पहुंच सका था। उबड़-खाबड़ इलाका होने के चलते चंद्रमा के इस हिस्से में उतरना मुश्किल है। यहां पानी की खोज हो सकती है। इसका इस्तेमाल ईंधन और ऑक्सीजन निकालने के साथ-साथ पीने के पानी के लिए भी किया जा सकता है।