सार

हिंदू कैलेंडर के अनुसार 788 ई में वैशाख माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को भगवान शंकराचार्य का जन्म हुआ था। इस बार ये तिथि सोमवार, 17 मई को है। इस दिन शंकराचार्य जयंती मनाई जाएगी।

उज्जैन. हिंदू कैलेंडर के अनुसार 788 ई में वैशाख माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को भगवान शंकराचार्य का जन्म हुआ था। इस बार ये तिथि सोमवार, 17 मई को है। इस दिन शंकराचार्य जयंती मनाई जाएगी। आदि गुरु शंकराचार्य ने कम उम्र में ही वेदों का ज्ञान ले लिया था। इसके बाद 820 ई में इन्होंने हिमालय में समाधि ले ली।

8 साल की उम्र में वेदों का ज्ञान
माना जाता है कि भगवान शिव की कृपा से ही आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म हुआ। जब ये तीन साल के थे तब इनके पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद गुरु के आश्रम में इन्हें 8 साल की उम्र में वेदों का ज्ञान हो गया। फिर ये भारत यात्रा पर निकले और इन्होंने देश के 4 हिस्सों में 4 पीठों की स्थापना की। ये भी कहा जाता है इन्होंने 3 बार पूरे भारत की यात्रा की थी।

केरल के नंबूदरी ब्राह्मण कुल में हुआ जन्म
आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म केरल के कालड़ी गांव में हुआ था। उनका जन्म दक्षिण भारत के नम्बूदरी ब्राह्मण कुल में हुआ था। आज इसी कुल के ब्राह्मण बद्रीनाथ मंदिर के रावल होते हैं। ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य की गद्दी पर नम्बूदरी ब्राह्मण ही बैठते हैं।

4 वेदों से जुड़े 4 पीठ
जिस तरह ब्रह्मा के चार मुख हैं और उनके हर मुख से एक वेद की उत्पत्ति हुई है। यानी पूर्व के मुख से ऋग्वेद. दक्षिण से यजुर्वेद, पश्चिम से सामवेद और उत्तर वाले मुख से अथर्ववेद की उत्पत्ति हुई है। इसी आधार पर शंकराचार्य ने 4 वेदों और उनसे निकले अन्य शास्त्रों को सुरक्षित रखने के लिए 4 मठ यानी पीठों की स्थापना की।
ये चारों पीठ एक-एक वेद से जुड़े हैं। ऋग्वेद से गोवर्धन पुरी मठ यानी जगन्नाथ पुरी, यजुर्वेद से श्रंगेरी जो कि रामेश्वरम् के नाम से जाना जाता है। सामवेद से शारदा मठ, जो कि द्वारिका में है और अथर्ववेद से ज्योतिर्मठ जुड़ा है। ये बद्रीनाथ में है। माना जाता है कि ये आखिरी मठ है और इसकी स्थापना के बाद ही आदि गुरु शंकराचार्य ने समाधि ले ली थी।