सार

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। इस बार ये व्रत 28 अक्टूबर, गुरुवार को है। अहोई अष्टमी का व्रत संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाता है। इतना ही नहीं, संतान प्राप्ति के लिए इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं।

उज्जैन. कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। इस बार ये व्रत 28 अक्टूबर, गुरुवार को है। अहोई अष्टमी का व्रत संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाता है। इतना ही नहीं, संतान प्राप्ति के लिए इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं। कहते हैं कि जिन महिलाओं की संतान दीर्घायु न हो रही हो या फिर गर्भ में ही मृत्यु हो रही हो उन महिलाओं के लिए भी अहोई अष्टमी का व्रत काफी शुभ होता है। इस दिन महिलाएं सुबह से बिना कुछ खाए-पिए व्रत रखती हैं और रात को तारों को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। वहीं, कई जगह महिलाएं इस दिन भी चांद देखकर व्रत खोलती हैं। 

कौन है अहोई माता?
वास्तव में अहोई का तात्पर्य है कि अनहोनी को भी बदल डालना। उत्तर भारत के विभिन्न अंचलों में अहोई माता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है। सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी की होई बनवाती हैं। जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है। अहोई के चित्रांकन में ज्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास साही तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं। करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अष्टमी तिथि को देवी अहोई माता का व्रत किया जाता है। यह व्रत पुत्र की लम्बी आयु और सुखमय जीवन की कामना से पुत्रवती महिलाएं करती हैं।

अष्टमी तिथि कब से कब तक?
अष्टमी तिथि 28 अक्टूबर, गुरुवार को दोपहर 12:49 से शुरू होकर 29 अक्टूबर, शुक्रवार को दोपहर 2:09 तक रहेगी।

व्रत व पूजन विधि
अहोई व्रत के दिन सुबह उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके संतान की लंबी उम्र व सुखी जीवन के लिए कामना करते हुए यह संकल्प लें- मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं, अहोई माता मेरी संतान को लंबी उम्र, स्वस्थ एवं सुखी रखे। पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं। शाम को इन चित्रों की पूजा करें। अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है, जिसे सेह या स्याहु कहते हैं। इस सेह की पूजा रोली, चावल, दूध व भात से की जाती है। पूजा चाहे आप जिस विधि से करें, लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुनें। पूजा के बाद सास के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके बाद ही अन्न जल ग्रहण करें।

अहोई अष्टमी व्रत की कथा
किसी नगर में चंपा नाम की एक महिला रहती थी। उसके विवाह को 5 साल होने के बाद भी उसकी कोई संतान नहीं थी। तब एक वृद्ध महिला ने उसे अहोई अष्टमी व्रत करने की सलाह दी। चंपा की पड़ोसन चमेली ने भी देखा-देखी संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखा। चंपा ने श्रद्धा से व्रत किया और चमेली ने अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए। व्रत से प्रसन्न होकर देवी ने चंपा और चमेली को दर्शन दिए।
देवी ने उनसे वरदान मांगने को कहा- चमेली ने झट से एक पुत्र मांग लिया, जबकि चंपा ने विनम्र भाव से कहा कि- मां तो सब जानती हैं, बिना मांगे ही मेरी इच्छा पूरी कीजिए। तब देवी ने कहा कि- उत्तर दिशा में एक बाग में बहुत से बच्चे खेल रहे हैं। वहां जो बच्चा तुम्हें अच्छा लगे, उसे अपने घर ले आना। यदि न ला सकी तो तुम्हें संतान नहीं मिलेगी। चंपा व चमेली दोनों बाग में जाकर बच्चों को पकड़ने लगी। बच्चे रोने लगे और भागने लगे।
चंपा से उनका रोना नहीं देखा गया। उसने कोई भी बच्चा नहीं पकड़ा पर चमेली ने एक रोते हुए बच्चे को बालों से कसकर पकड़ लिया। देवी ने चंपा की दयालुता की प्रशंसा करते हुए उसे पुत्रवती होने का वरदान दिया पर चमेली को मां बनने में अयोग्य सिद्धि कर दिया। इस तरह श्रद्धापूर्वक अहोई माता की पूजा करने से चंपा को योग्य पुत्र की प्राप्ति हुई।