सार
आज (27 नवंबर, शनिवार) कालभैरव अष्टमी (Kalbhairav Ashtami 2021) है। इस दिन प्रमुख भैरव मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है। वैसे तो हमारे देश में भगवान कालभैरव के अनेक मंदिर हैं, लेकिन इन सभी में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के काशी (Varanasi) स्थित भैरव मंदिर अति प्रसिद्ध है।
उज्जैन. कहा जाता है कि बाबा विश्वनाथ काशी के राजा हैं और काल भैरव उनके कोतवाल, जो लोगों को आशीर्वाद भी देते हैं और सजा भी। यमराज को भी यहां के इंसानों को दंड देने का अधिकार नहीं है। महंत के मुताबिक, काल भैरव के दर्शन मात्र से शनि की साढ़े साती, अढ़ैया और शनि दंड से बचा जा सकता है। ईशान कोण में स्थित ये मंदिर तंत्र साधना का बड़ा केंद्र है। यहां बाबा को दाल बरा, मदिरा, पेड़ामलाई खूब प्रिय है। भगवान कालभैरव की चारों प्रहर की आरती होती है, जहां भक्तों की काफी भीड़ लगती है।
कैसे बाबा भैरव बने काशी के कोतवाल?
धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ। इसके बाद सभी भगवान शिव के पास गए। कुछ बातों को लेकर ब्रह्मा जी, भगवान शिव को भला-बुरा कहने लगे। इसके बाद भगवान शिव को गुस्सा आ गया। भगवान शिव के गुस्से से ही काल भैरव जी प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी का सिर काट दिया था। काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का दोष लगने के बाद वह तीनों लोकों में घूमे। लेकिन उनको मुक्ति नहीं मिली। इसके बाद भगवान शिव ने आदेश दिया कि तुम काशी जाओ, वहीं मुक्ति मिलेगी। इसके बाद वह काल भैरव के रूप में वो काशी में स्वयं भू प्रकट हुए। यही आकर उन्हें ब्रह्मदोष से मुक्ति मिली।
मंदिर का इतिहास
बनारस के मौजूदा भैरव मंदिर को साल 1715 में दोबारा बनवाया गया था। इसे बाजीराव पेशवा ने बनवाया था। इनके बाद रानी अहिल्या बाई होलकर ने भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। ये मंदिर आज तक वैसा ही है। इसकी बनावट में कोई बदलाव नहीं किया गया। मंदिर की बनावट तंत्र शैली के आधार पर है। ईशानकोण पर तंत्र साधना करने की खास जगह है। काशी में जब भी कोई अधिकारी पदस्थ होता है तो सबसे पहले उसे काल भैरव के यहां हाजरी लगानी होती है तभी वह अपना कामकाज प्रारंभ करता है। इतना ही नहीं यहां के लोगों के बीच यह मान्यता है कि यहां मंदिर के पास एक कोतवाली भी है और काल भैरव स्वयं उस कोतवाली का निरीक्षण करते हैं।
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