सार
Bhishma Jayanti 2023: महाभारत में अनेक प्रमुख पात्र हैं, भीष्म पितामाह भी इनमें से एक है। हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भीष्म जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 16 जनवरी, सोमवार को है।
उज्जैन. भीष्म पितामाह को महाभारत का सबसे प्रमुख पात्र कहा जाए तो गलत नहीं होगा। भीष्म पितामाह एकमात्र ऐसे पात्र हैं जो शुरू से लेकर आखिर तक महाभारत में बने रहे। जब उन्होंने देखा कि हस्तिनापुर अब सुरक्षित और योग्य हाथों में है, इसके बाद ही उन्होंने अपने प्राण त्यागे। मरने से पहले उन्होंने पांडवों को राजनीति, युद्ध नीति, कूटनीति और अर्थनीति से जुड़ी कई बातें बताई। हर साल माघ मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को भीष्म पितामाह की जयंती मनाई जाती है। इस बार ये तिथि 16 जनवरी, सोमवार को है। आगे जानिए भीष्म पितामाह से जुड़ी खास बातें…
पूर्व जन्म में कौन थे भीष्म पितामाह? (Who was Bhishma Pitamah in his previous birth?)
महाभारत के अनुसार, महात्मा भीष्म पूर्वजन्म में वसु (एक प्रकार के देवता) थे। उन्होंने बल पूर्वक एक ऋषि की गाय का हरण कर लिया था, क्रोधित होकर ऋषि ने उन्हें और उनके 7 भाइयों को मनुष्य रूप से जन्म लेने और श्राप दिया। 7 भाइयों को तो देवनदी गंगा ने नदी में प्रवाहित कर श्रापमुक्त कर दिया, लेकिन भीष्म ने उस श्राप के प्रभाव से आजीवन आजीवन ब्रह्मचारी रहकर अपना जीवन व्यतीत किया।
किसने दिया था भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान? (Interesting things related to Bhishma Pitamah)
भीष्म राजा शांतनु व गंगा की आठवीं संतान थे। बचपन में इनका नाम देवव्रत था। देवव्रत की योग्यता देखते हुए शांतनु ने उन्हें युवराज बना दिया। जब शांतनु की आसक्ति सत्यवती पर हो गई तो उनकी इच्छा पूरी करने के लिए देवव्रत ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की शपथ ली। इसलिए इनका नाम भीष्म पड़ा। प्रसन्न होकर शांतनु ने उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान दिया था।
पांडवों को किसने बताया था भीष्म की मृत्यु का रहस्य?
महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से भीष्म पितामाह को प्रधान सेनापति बनाया गया। उनकी मृत्यु किसी के भी हाथों संभव नहीं थी और उसके बिना पांडवों की जीत नहीं हो सकती थी। तब युद्ध के दौरान एक रात पांडव भीष्म पितामाह से मिलने पहुंचें। भीष्म ने पांडवों को बताया कि अगर कोई स्त्री युद्ध में मेरे सामने आ जाए तो मैं शस्त्र रख दूंगा। तब श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन ने शिखंडी को अपने आगे खड़ा कर लिया। शिखंडी जन्म से एक स्त्री था, इसलिए भीष्म ने उस पर शस्त्र नहीं चलाए। इस तरह भीष्म पितामाह को अर्जुन ने अपने बाणों से बींधकर शरशय्या पर लेटा दिया।
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