सार
आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में कई ऐसे सूत्र बताए हैं जो आपके जीवन की अनेक परेशानियां दूर कर सकते हैं।
उज्जैन. आचार्य चाणक्य ने विवाह के संबंध में भी अपनी नीतियां स्पष्ट की हैं। उन नीतियों को अगर ध्यान में रखा जाए तो वैवाहिक जीवन सफल हो सकता है अन्यथा उसकी सफलता में संदेह बना रहता है। आचार्य चाणक्य के अनुसार…
वरयेत् कुलजां प्राज्ञो विरूपामपि कन्यकाम्।
रूपशीलां न नीचस्य विवाह: सदृशे कुले।
अर्थ- विवाह के लिए कन्या का चुनाव करते समय उसके गुणों, कुल, धार्मिक आस्था और धैर्य के बारे में जरूर विचार करना चाहिए।
1. चाणक्य कहते हैं कि जीवनसाथी को चुनने का पैमाना उसका शारीरिक आकर्षण नहीं होना चाहिए, क्योंकि अक्सर पुरुष सुंदर जीवनसाथी के चक्कर में उसके गुणों को दरकिनार कर देते हैं। ऐसे में उन्हें जीवन में दुखों का सामना करना पड़ता है।
2. विवाह के दौरान हमें कन्या के कुल को भी परखना चाहिए। उच्च कुल की कन्या हमेशा घर में सुख शांति का महौल बनाए रखती है जबकि निम्न कुल की कन्याएं शादी के बाद ही परिवार में कलह का वातावरण पैदा कर देती हैं। चाणक्य का मानना था कि उच्च कुल की कन्या के पास अपना एक स्वाभिमान होता है जबकि निम्न कुल की कन्या का आचरण हमेशा निम्न ही रहता है जो परिवार को कभी भी मुश्किल में डाल सकता है।
3. विवाह के दौरान अगर कोई व्यक्ति कन्या के धार्मिक गुणों और व्यवहार को परखता है तो वह बुद्धिमान और ज्ञानी कहा जा सकता है। क्योंकि अगर कन्या धार्मिक गुणों से परिपूर्ण है तो वो घर में हमेशा शांति का वातावरण बनाए रखेगी। वह हमेशा यही कोशिश करेगी कि घर में कभी कोई कलह न हो।