सार

आचार्य चाणक्य का भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। चाणक्य काल में भारत खंड-खंड में बंटा हुआ था। चाणक्य ने भारत को फिर से संगठित किया और चंद्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाया।

उज्जैन. चाणक्य ने 'चाणक्य नीति' नाम के ग्रंथ की भी रचना की थी। अगर इस ग्रंथ में बताई गई नीतियों का पालन किया जाए तो हम कई परेशानियों से बच सकते हैं। यहां जानिए चाणक्य की एक ऐसी नीति, जिसमें बताया गया है कि हमें स्वर्ग के समान सुख कैसे मिल सकता है...

आचार्य कहते हैं कि
यस्य पुत्रो वशीभूतो भार्या छन्दानुगामिनी।
विभवे यश्च सन्तुष्टस्तस्य स्वर्ग इहैव हि।।

1. ये चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय का तीसरा श्लोक है। इस नीति में बताया गया है कि अगर किसी व्यक्ति की संतान आज्ञाकारी है, गलत काम नहीं करती है और माता-पिता का सम्मान करती है, वश में रहती है तो ऐसे माता-पिता का जीवन स्वर्ग की तरह ही होता है। अगर संतान माता-पिता का अनादर करती है तो माता-पिता को नर्क की तरह ही दुख मिलता है।
2. जिन पुरुषों की भार्या यानी पत्नी हर बात मानने वाली है तो ऐसे पुरुष का जीवन हमेशा सुखी रहता है। पति-पत्नी के बीच तालमेल की कमी होने पर ही वाद-विवाद होते हैं और जीवन नर्क समान बन जाता है।
3. चाणक्य कहते हैं जिन लोगों के पास संस्कारवान संतान, आज्ञाकारी पत्नी के साथ ही पर्याप्त धन भी है, वे इसी धरती है पर स्वर्ग के समान सुख पाते हैं। इनके जीवन में कभी कलह नहीं होता है, हमेशा सुखी रहते हैं।