सार

हिंदू धर्म में मनुस्मृति का विशेष महत्व है। मनुस्मृति के अनुसार हमारे घर में 5 ऐसे स्थान होते हैं, जहां जाने-अनजाने में ही हमसे पाप (जीव हत्या) हो जाता है।

उज्जैन. घर में जहां जाने-अनजाने में हमसे जीव हत्या हो जाती है। ये 5 स्थान कौन से हैं, इसकी जानकारी इस प्रकार है-

श्लोक
पञ्चसूना गृहस्थस्य चुल्की पेषण्युपुष्कर:।
कण्डनी चोदकुम्भश्च वध्यते वास्तु वाहयन्।।
तासां क्रमेण सर्वासां निष्कृत्यर्थं महर्षिभि:।
पञ्च क्लृप्ता महायज्ञा: प्रत्यहं गृहमेधिनाम्।।

अर्थात- गृहस्थ के लिए पांच चीजों (1. चूल्हा, 2. चक्की, 3. झाड़ू, 4. उखल-मूसल तथा 5. पानी का कलश) का उपयोग सूक्ष्म जीवों की हत्या का कारण बनता है और इनका उपयोग करने वाला पाप का भागीदार बनता है।

मनु स्मृति के अनुसार इन 5 स्थानों पर अनजाने में हुई जीव हत्या के पाप से बचने के लिए गृहस्थ जीवन जीने वाले को ये पांच महायज्ञ करने चाहिए। ये हैं वो 5 महायज्ञ

श्लोक
अध्यापनं ब्रह्मयज्ञः पितृयज्ञस्तु तर्पणम्।
होमो दैवो बलिर्भौतोनृयज्ञोतिथिपूजनम्।।

अर्थात्- वेदों का अध्ययन करना और कराना ब्रह्मयज्ञ, अपने पितरों (स्वर्गीय पूर्वजों) का श्राद्ध-तर्पण करना पितृ यज्ञ, हवन करना देव यज्ञ, बलिवैश्वदेव करना भूत यज्ञ और अतिथियों का सत्कार करना तथा उन्हें भोजन कराना नृयज्ञ अर्थात मनुष्य यज्ञ कहलाता है।

1. ब्रह्मयज्ञ- हर रोज वेदों का अध्ययन करने से ब्रह्मयज्ञ होता है। वेदों के अलावा पुराण, उपनिषद, महाभारत, गीता या अध्यात्म विद्याओं के पाठ से भी यह यज्ञ पूरा हो जाता है। यह न हो तो मात्र गायत्री साधना भी ब्रह्मयज्ञ संपूर्ण कर देती है। धार्मिक दृष्टि से इस यज्ञ से ऋषि ऋण से मुक्ति मिलती है। इसलिए इसे ऋषियज्ञ या स्वाध्याय यज्ञ भी कहा जाता है।

2. देवयज्ञ- देवी-देवताओं की प्रसन्नता के लिए हवन करना देवयज्ञ कहलाता है।

3. भूतयज्ञ- कीट-पतंगों, पशु-पक्षी, कृमि या धाता-विधाता स्वरूप भूतादि देवताओं के लिए अन्न या भोजन अर्पित करना भूतयज्ञ कहलाता है।

4. पितृयज्ञ- मृत पितरों की संतुष्टि व तृप्ति के लिये अन्न-जल समर्पित करना पितृयज्ञ कहलाता है। जिससे पितरों की असीम कृपा से सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। अमावस्या, श्राद्धपक्ष आदि इसके लिए विशेष दिन है।

5. मनुष्य यज्ञ- घर के दरवाजे पर आए अतिथि को अन्न, वस्त्र, धन से तृप्त करना या दिव्य पुरुषों के लिए अन्न दान आदि मनुष्य यज्ञ कहलाता है।