सार

इन दिनों गणेश उत्सव की धूम पूरे देश में है। प्रमुख गणेश मंदिरों में भी भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। प्राचीन समय में इसी तिथि पर भगवान गणेश प्रकट हुए थे। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा से जानिए गणेश जी से जुड़ी ऐसी ही कुछ मान्यताएं और उनसे जुड़े फैक्ट्स...

उज्जैन. पूजन में कई तरह की चीजें गणेश जी को चढ़ाई जाती है, लेकिन ध्यान रखें तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाना चाहिए। गणेश जी का को एकदंत कहा जाता है, क्योंकि उनका एक दांत टूटा हूआ है। गणेशजी से जुड़ी कई परंपराएं और मान्यताएं और कथाएं हमारे समाज में प्रचलित हैं। इनमें से कुछ मान्यताओं के पीछे वैज्ञानिक तो कुछ के पीछे मनोवैज्ञानिक पक्ष छिपा है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा से जानिए गणेश जी से जुड़ी ऐसी ही कुछ मान्यताएं और उनसे जुड़े फैक्ट्स...

क्यों चढ़ाते हैं श्रीगणेश को दूर्वा?
एक खास प्रकार की घास है दूर्वा। गणेश जी को दूर्वा क्यों चढ़ाते हैं, इस संबंध में एक कथा इस प्रकार है- पौराणिक समय में अनलासुर राक्षक के आतंक से सभी बहुत परेशान हो गए थे। तब देवराज इंद्र, अन्य देवता और प्रमुख ऋषि-मुनि महादेव के पास पहुंचे। शिवजी ने कहा कि ये काम सिर्फ गणेश ही कर सकते हैं। इसके बाद सभी देवता और ऋषि-मुनि भगवान गणेश के पास पहुंचे। देवताओं की प्रार्थना सुनकर गणपति अनलासुर से युद्ध करने पहुंचे और उसे निगल लिया। इसके बाद गणेश जी के पेट में बहुत जलन होने लगी। जब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठें बनाकर गणेश जी को खाने के लिए दी। जैसे ही उन्होंने दूर्वा खाई, उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई।

गणपति की सवारी मूषक क्यों है?
एक बार असुर मूषक यानी चूहे के रूप में पाराशर ऋषि के आश्रम में पहुंच गया और पूरा आश्रम कुतर-कुतर कर नष्ट कर दिया। आश्रम के सभी ऋषियों ने गणेश जी से मूषक का आतंक खत्म करने की प्रार्थना की। गणेश जी वहां प्रकट हुए और उन्होंने अपना पाश फेंककर मूषक को बंदी बना लिया और अपना वाहन बना लिया। जैसे ही गणेश जी उसके ऊपर सवार हुए तो वह दबने लगा। उसने फिर गणेश जी से प्रार्थना की कि कृपया मेरे अनुसार अपना वजन करें। तब गणेश जी ने मूषक के अनुसार अपना भार कर लिया। तब से मूषक गणेश जी का वाहन है।

श्रीगणेश को तुलसी क्यों नहीं चढ़ाते हैं?
पौराणिक कथा के अनुसार, तुलसी ने भगवान गणेश से विवाह करने की प्रार्थना की थी, लेकिन गणेशजी ने मना कर दिया। इस वजह से तुलसी क्रोधित हो गईं और उसने गणेश जी को दो विवाह होने का शाप दे दिया। इस श्राप की वजह से गणेशजी क्रोधित हो गए और उन्होंने तुलसी को श्राप देते हुए कहा कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा। यह सुनकर तुलसी दुःखी हो गई और क्षमा मांगने लगी। तब गणेशजी ने कहा कि तुम्हारा विवाह असुर से होगा, लेकिन तुम भगवान विष्णु को प्रिय रहोगी। तुमने मुझे श्राप दिया है, इस वजह से मेरी पूजा में तुलसी वर्जित ही रहेगी।

गणेशजी का एक दांत कैसे टूटा?
एक दिन परशुराम शिव जी से मिलने कैलाश पर्वत पहुंचे। बाल गणेश ने परशुराम को शिव जी से मिलने से रोक दिया, क्योंकि उस समय शिव जी विश्राम कर रहे थे। इस बात से क्रोधित होकर परशुराम ने अपने फरसे से गणेश जी का दांत काट दिया था। गणेश जी ने परशुराम के फरसे के प्रहार का विरोध नहीं किया, क्योंकि ये फरसा शिव जी ने ही उन्हें भेंट किया था। फरसे का प्रहार खाली न जाए, इसीलिए गणेश जी ने इस वार को अपने दांत पर झेल लिया और दांत टूट गया। इसके बाद से गणेश जी एकदंत कहलाए।

गणेशजी को क्यों प्रिय हैं मोदक?
एक कथा के अनुसार माता अनसूया ने गणेश जी को अपने यहां भोजन के लिए आमंत्रित किया था। उस समय वे खाना खाते ही जा रहे थे, लेकिन उनका पेट ही नहीं भर रहा था। तब माता अनसूया ने मोदक बनाए। मोदक खाते ही गणेश जी तृप्त हो गए। तभी से उन्हें मोदक का भोग लगाने की परंपरा प्रचलित हुई है।

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