सार

हमारे देश में भगवान श्रीगणेश के अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं। छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के दंतेवाड़ा (Dantewada) में भी भगवान श्रीगणेश की एक प्रसिद्ध प्रतिमा है। इसे ढोलकल गणपति कहते हैं। यह प्रतिमा दंतेवाड़ा (Dantewada) से करीब 13 किमी दूर ढोलकल की पहाड़ियों पर 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।

उज्जैन. दंतेवाड़ा के ढोलकल पहाड़ पर स्थित सैकड़ों साल पुरानी यह भव्य गणेश प्रतिमा आज भी लोगों के लिए आश्चर्य का विषय बनी हुई है। ये दुनिया में भगवान गणपति की सबसे दुर्लभ प्रतिमाओं में से एक मानी जाती है। इन्हें दंतेवाड़ा का रक्षक भी कहा जाता है। गणेश उत्सव (Ganesh Utsav 2021) के अवसर पर जानिए इस मंदिर से जुड़ी खास बातें…

1 हजार साल पुरानी है ये प्रतिमा
भगवान श्रीगणेश की ये प्रतिमा लगभग एक हजार साल पुरानी है, जो नागवंशी राजाओं के काल में बनाई गई थी। सदियों पहले इतने दुर्गम इलाके में इतनी ऊंचाई पर स्थापित की गई यह गणेश प्रतिमा आश्चर्य के कम नहीं है। यहां पर पहुंचना आज भी बहुत जोखिम भरा काम है। पुरातत्वविदों का अनुमान यह है 10वीं-11वीं शताब्दी में दंतेवाड़ा क्षेत्र के रक्षक के रूप नागवंशियों ने गणेश जी की यह मूर्ति यहां पर स्थापना की थी।

भव्य है गणेश प्रतिमा
पहाड़ी पर स्थापित गणेश प्रतिमा लगभग 3-4 फीट ऊंची ग्रेनाइट पत्थर से बनी हुई है। यह प्रतिमा वास्तुकला की दृष्टि से बहुत ही कलात्मक है। गणपति की इस प्रतिमा में ऊपरी दाएं हाथ में फरसा, ऊपरी बाएं हाथ में टूटा हुआ एक दंत, नीचे दाएं हाथ में अभय मुद्रा में अक्षमाला धारण किए हुए तथा नीचे बाएं हाथ में मोदक धारण किए हुए हैं। पुरातत्वविदों के मुताबिक इस प्रकार की प्रतिमा बस्तर क्षेत्र में कहीं नहीं मिलती है।

यहां गिरा था गणपति का दांत
दंतेश का क्षेत्र (वाड़ा) को दंतेवाड़ा कहा जाता है। इस क्षेत्र में एक कैलाश गुफा भी है। इस क्षेत्र से जुड़ी एक मान्यता है कि यह वही कैलाश क्षेत्र है, जहां पर श्रीगणेश एवं परशुराम के बीच युद्ध हुआ था। इस युद्ध में गणपति का एक दांत टूटकर यहां गिरा था। तभी गणपति का एकदंत नाम भी पड़ा। यहां पर दंतेवाड़ा से ढोलकल पहुंचने के मार्ग में एक ग्राम परसपाल मिलता है, जो परशुराम के नाम से जाना जाता है। इसके आगे ग्राम कोतवाल पारा आता है। कोतवाल का अर्थ होता है रक्षक।

दंतेवाड़ा के रक्षक हैं श्रीगणेश
मान्यताओं के अनुसार, इतनी ऊंची पहाड़ी पर भगवान गणेश की स्थापित नागवंशी शासकों ने की थी। गणेश प्रतिमा के पेट पर एक नाग का चिह्न मिलता है। कहा जाता है कि मूर्ति का निर्माण करवाते समय नागवंशियों ने यह चिह्न भगवान गणेश पर अंकित किया होगा। कला की दृष्टि से यह मूर्ति 10-11 शताब्दी की (नागवंशी) प्रतिमा कही जा सकती है।

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