सार

धर्म ग्रंथों में आषाढ़ मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व बताया गया है क्योंकि इस दिन गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima 2022) का पर्व मनाया जाता है। ये पर्व सभी गुरुओं को समर्पित है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं की पूजा विशेष रूप से करते हैं।
 

उज्जैन. हिंदू धर्म में गुरु को भगवान का दर्जा दिया गया है, क्योंकि गुरु ही अपने शिष्यों को अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं। आषाढ़ मास की पूर्णिमा पर गुरु पूर्णिमा पर्व की परंपरा प्राचीन समय से निभाई जा रही है। गुरु के महत्व को समझने के लिए ही हर साल ये पर्व मनाया जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस दिन जो व्यक्ति गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करता है, उसका जीवन सफल हो जाता है। इस दिन विशेष आयोजन भी किए जाते हैं जिसमें धर्म व आध्यात्मिक गुरुओं का सम्मान किया जाता है। आगे जानिए क्यों मनाते हैं ये पर्व और इससे जुड़ी खास बातें…

महर्षि वेदव्यास को समर्पित है ये उत्सव
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। वो इसलिए क्योंकि मान्यता के अनुसार, इसी तिथि पर महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। महर्षि वेदव्यास ने ही महाभारत सहित अन्य ग्रंथों की रचना की। इन्होंने ने ही वेदों को अलग-अलग किया और इनके शिष्यों ने उपनिषदों की रचना की। महर्षि वेदव्यास कौरवों और पांडवों के गुरु भी थे और पूर्वज भी। उन्हीं की स्मृति में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। महर्षि वेदव्यास ने भविष्योत्तर पुराण में गुरु पूर्णिमा के बारे में लिखा है-

मम जन्मदिने सम्यक् पूजनीय: प्रयत्नत:।
आषाढ़ शुक्ल पक्षेतु पूर्णिमायां गुरौ तथा।।
पूजनीयो विशेषण वस्त्राभरणधेनुभि:।
फलपुष्पादिना सम्यगरत्नकांचन भोजनै:।।
दक्षिणाभि: सुपुष्टाभिर्मत्स्वरूप प्रपूजयेत।
एवं कृते त्वया विप्र मत्स्वरूपस्य दर्शनम्।।

अर्थात- आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को मेरा जन्म दिवस है। इसे गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन पूरी श्रृद्धा के साथ गुरु को कपड़े, आभूषण, गाय, फल, फूल, रत्न, धन आदि समर्पित कर उनका पूजन करना चाहिए। ऐसा करने से गुरुदेव में मेरे ही स्वरूप के दर्शन होते हैं।

गुरु को माना गया है भगवान से भी श्रेष्ठ
हिंदू धर्म में गुरु को भगवान से भी श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि ही हमारे जीवन को सही दिशा प्रदान करता है और समाज को कुरीतियों से दूर कर सच्चाई का मार्ग दिखाता है। संत कबीर के इस दोहे से गुरु का महत्व पता चलता है।

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े , काके लागू पाय|
बलिहारी गुरु आपने , गोविन्द दियो बताय||
अर्थ – संत कबीर के अनुसार, जीवन में कभी ऐसी स्थिति आ जाये की गुरु और गोविन्द (ईश्वर) एक साथ खड़े हों तो सबसे पहले गुरु को प्रणाम करना चाहिए क्योंकि गुरु ने ही गोविन्द से हमारा परिचय कराया है इसलिए गुरु का स्थान गोविन्द यानी भगवान से भी ऊँचा है।

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