सार
Lohri 2023 Date: हर साल मकर संक्रांति के एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस बार इस पर्व को लेकर लोगों के मन में असमंजस की स्थिति बनी हुई है क्योंकि मकर संक्रांति का पर्व इस बार 15 जनवरी को है।
उज्जैन. लोहड़ी हंसने, गाने और खुशियां मनाने का पर्व है। ये त्योहार मुख्य रूप से सूर्य और अग्नि देव को समर्पित है। लोहड़ी (Lohri 2023) की पवित्र अग्नि में नई फसलों समर्पित की जाती हैं। ये एक तरह से प्रकृति का आभार प्रकट करने का पर्व है। वैसे तो ये पर्व सिक्ख धर्म के अनुयायी विशेष रूप से मनाते हैं, लेकिन इनके अलावा सिंधी समाज व धर्म के लोग भी इसके प्रति श्रद्धा रखते हैं। सिख धर्म में लोहड़ी जलाकर नव विवाहित जोड़ों और शिशुओं को बधाई देकर उपहार देने की परंपरा है। इस बार इस पर्व की तारीख को लेकर थोड़ा कन्यफ्यूजन है। आगे जानिए इस बार कब मनाया जाएगा ये पर्व…
कब मनाएं लोहड़ी 2023? (Kab Hai Lohri 2023)
आमतौर पर लोहड़ी का पर्व मकर संक्रांति की पूर्व संध्या यानी एक दिन पहले मनाया जाता है। वैसे तो मकर संक्रांति का पर्व हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है, लेकिन इस बार मकर संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी को रहेगा क्योंकि 14 की रात को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा। इस स्थिति में लोहड़ी का पर्व 14 जनवरी को मनाया जाना चाहिए। हालांकि इसे लेकर भी लोगों में मत भिन्नता हो सकती है।
क्यों मनाते हैं लोहड़ी?
लोहड़ी का पर्व क्यों मनाया जाता है, इसे लेकर कई मान्यताएं और परंपराए प्रचलित हैं। लोहड़ी को फसलों का त्योहार भी कहा जाता है। इस दिन से पंजाब में मूली और गन्ने की फसल बोई जाती है। वर्तमान समय में आधुनिकता के चलते लोहड़ी मनाने का तरीका पहले से काफी बदल गया है। अब लोहड़ी में पारंपरिक पहनावे और पकवानों की जगह आधुनिक पहनावे और पकवानों को शामिल कर लिया गया है। हालांकि पंजाब व उसके आस-पास के इलाकों में आज भी लोहड़ी का पर्व परंपरागत रूप से मनाया जाता है।
लोहड़ी से जुड़ी है माता सती की कथा
लोहड़ी से जुड़ी कथाओं में देवी सती की कथा भी शामिल है। उसके अनुसार, माता सती भगवान शिव की पत्नी थी। एक देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन द्ववेषपूर्वक महादेव और सती को आमंत्रित नहीं किया। फिर भी देवी सती बिना आमंत्रण के यज्ञ में पहुंच गई। जब देवी सती ने अपने पति शिव का अपमान होते हुए देखा तो यक्षकूंड की अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया। देवी सती की याद में ही लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है।
एक कथा ये भी
एक अन्य कथा के अनुसार, द्वापरयुग में जब सभी लोग मकर संक्रांति का पर्व मना रहे थे, उस समय कंस ने भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए लोहिता नाम की एक भयानक राक्षसी को उन्हें मारने के लिए भेजा। बालकृष्ण ने उस राक्षसी को खेल ही खेल में मार दिया। लोहिता नाम की राक्षसी से ही लोहड़ी उत्सव का नाम रखा। उसी घटना को याद करते हुए लोहड़ी पर्व मनाया जाता है।
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