सार

धर्म ग्रंथों के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि को भगवान विष्णु ने मत्स्य यानी मछली के रूप में अवतार लिया था। इस तिथि पर मत्स्य जयंती (Matsya Jayanti 2022) का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 3 अप्रैल, रविवार को है। इसे भगवान विष्णु का प्रथम अवतार भी कहा जाता है।

उज्जैन. मत्स्य अवतार में भगवान विष्णु ने सृष्टि का नाश होने से पहले राजा सत्यव्रत (Raja Satyavrat) और सप्तऋषियों सहित वनस्पतियों की रक्षा की थी ताकि सृष्टि का निर्माण दोबारा शुरू हो सके। इस बार मतस्य जयंती के पर्व को लेकर भी विद्वानों में दो मत है। कुछ विद्वानों का कहना है कि द्वितिया तिथि 3 अप्रैल, रविवार को होने से इसी दिन ये पर्व मनाया जाना चाहिए जबकि कुछ विद्वानों का कहना है कि 4 अप्रैल, सोमवार को उदया तिथि होने से इस दिन ये पर्व मनाना शास्त्र सम्मत रहेगा।

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इस विधि से करें पूजा
इस दिन सुबह जल्दी उठें। घर में सफाई कर के गंगाजल छिड़काव करें। इसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर के उनके सामने व्रत और पूजा का संकल्प लें। फिर वेदोक्त मंत्रों से मत्स्य रूप में भगवान विष्णुजी की पूजा करें। पूजा करने के बाद ब्राह्मण भोजन करवाएं और श्रद्धा अनुसार दान करें। शाम को एक बार पुन: पूजा करने के बाद स्वयं भोजन करें। 

मंत्र
वंदे नवघनश्यामम् पीत कौशेयवासयम्।
सानंदम् सुंदरम शुद्धम श्रीकृष्णम् प्रकृते: परम् ।।
ऊं मत्सयरूपाय नम:।।

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ये हैं मतस्य अवतार की कथा
सतयुग में राजा सत्यव्रत थे। एक दिन वे नदी में स्नान कर रहे थे। अचानक उनकी अंजलि (हथेली) में एक छोटी सी मछली आई। जब वे मछली को दोबारा नदी में डालने लगे तो मछली ने कहा “आप मुझे सागर में मत डालिए अन्यथा बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी।” मछली की बात सुनकर राजा सत्यव्रत उसे अपने महल ले आए और एक बर्तन में रख दिया। देखते ही देखते वो मछली उस बर्तन से बड़ी हो गई। राजा ने बड़ा बर्तन मंगवाकर मछली को उसमें रखवाया, लेकिन वो मछली और भी बड़ी हो गई।
राजा ने उस मछली को महल के सरोवर में रखवाया, लेकिन कुछ ही देर में वो मछली सरोवर से भी बड़ी हो गई। राजा सत्यव्रत समझ गए कि ये कोई मामूली जीव नहीं है। राजा ने मछली से वास्तविक स्वरूप में आने की प्रार्थना की। तभी चारभुजाधारी भगवान विष्णु प्रकट हुए और बोले “ये मेरा मत्स्यावतार है। आज से सात दिन बाद प्रलय होगी। तब एक विशाल नाव तुम्हारे पास आएगी। तुम सप्त ऋषियों, औषधियों और बीजों को लेकर उसमें बैठ जाना। तब मैं मत्स्य के रूप में तुम्हारे पास आऊंगा और तुम्हारी रक्षा करूंगा। जैसे भगवान विष्णु ने कहा ठीक वैसा ही हुआ।

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