सार
इस्लामी कैलेंडर (Hijri Calendar) का नया साल (1443 हिजरी) 10 अगस्त, मंगलवार से शुरू हो चुका है। इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने को मुहर्रम (Muharram 2021) कहते हैं। इस महीने में इमाम हुसैन ने बलिदान दिया था।
उज्जैन. अन्य धर्मों में नए साल की शुरूआत बड़े ही धूम-धाम और पूजा-पाठ से होती है, लेकिन इस्लामी नववर्ष में ऐसा नहीं होता क्योंकि मुस्लिमों के शिया समुदाय के लिए ये मातम का महीना है, जिसे कि वो इमाम हुसैन (Imam Hussain) के शोक में मनाते हैं। मुहर्रम महीने का 10वां दिन बहुत ही खास माना जाता है क्योंकि इसी दिन इस्लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन (Imam Hussain) ने अपने प्राण त्याग दिए थे। इसी वजह से 10वें मुहर्रम को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है, जिसे आशूरा जाता है।
जानिए मुहर्रम (Muharram 2021) से जुड़ी खास बातें…
- मुहर्रम की पहली तारीख से मुसलमानों का नया साल हिजरी शुरू होता है।
- मुस्लिम देश के लोग हिजरी कैलेंडर को ही मानते हैं।
- चार पवित्र महीनों में से एक माना जाता है मुहर्रम को।
- मुहर्रम (Muharram 2021) का अर्थ होता है हराम यानी निषिद्ध।
- इस महीने में ताजिया और जुलूस निकाले जाने की परंपरा है।
- इस पूरे महीने को अल्लाह का महीना कहा जाता है।
क्या है इतिहास, क्यों मनाते हैं मातम?
- कर्बला की बस्ती के बारे में ऐसा कहते हैं कि यह बस्ती सिर्फ 8 दिनों में ही तबाह कर दी गई। 2 मुहर्रम (Muharram 2021) 61 हिजरी में कर्बला में इमाम हुसैन (Imam Hussain) के काफिले को जब याजीदी फौज ने घेर लिया तो हुसैन साहब ने अपने साथियों से यहीं खेमे लगाने को कहा और इस तरह कर्बला की यह बस्ती बसी।
- इस बस्ती मे इमाम हुसैन (Imam Hussain) के साथ उनका पूरा परिवार और चाहने वाले थे। बस्ती के पास बहने वाली फुरात नदी के पानी पर भी याजीदी फौज ने पहरा लगा दिया। 7 मुहर्रम को बस्ती में जितना पानी था, सब खत्म हो गया। 9 मुहर्रम को याजीदी कमांडर इब्न साद ने अपनी फौज को हुक्म दिया कि दुश्मनों पर हमला करने के लिए तैयार हो जाए।
- उसी रात इमाम हुसैन ने अपने साथियों को इकट्ठा किया। तीन दिन का यह भूखा, प्यासा कुनबा रात भर इबादत करता रहा। इसी रात (9 मुहर्रम की रात) को इस्लाम में शबे आशूर के नाम से जाना जाता है।
- दस मुहर्रम की सुबह इमाम हुसैन (Imam Hussain) ने अपने साथियों के साथ नमाज़-ए-फ़र्ज अदा किया। इमाम हुसैन की तरफ से सिर्फ 72 ऐसे लोग थे, जो मुक़ाबले में जा सकते थे। यजीद की फौज और इमाम हुसैन (Imam Hussain) के साथियों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें इमाम हुसैन अपने साथियों के साथ नेकी की राह पर चलते हुए शहीद हो गए और इस तरह कर्बला की यह बस्ती 10 मुहर्रम को उजड़ गई।