सार

हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर ज्वाला देवी का प्रसिद्ध मंदिर है।

उज्जैन. ज्वाला मंदिर को जोता वाली मां का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है।  वैज्ञानिक भी इस ज्वाला के लगातार जलने का कारण नहीं जान पाए हैं। जानिए इस मंदिर से जुड़ी खास बातें-

1. ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि इस मंदिर का प्राथमिक निर्माण राजा भूमिचंद ने करवाया था। बाद में महाराज रणजीतसिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निर्माण करवाया।
2. यहां पर धरती से नौ अलग-अलग जगह से ज्वालाएं निकल रही हैं जिसके ऊपर ही मंदिर है। इन नौ ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है।
3. इस मंदिर की गिनती माता के प्रमुख शक्तिपीठों में होती है। मान्यता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी। शक्तिपीठ होने के कारण इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है।
4. कहा जाता है कि जब सम्राट अकबर ने इस मंदिर से निकलने वाली चमत्कारी ज्योत के बारे में सुना तो उसने यहां जल रही नौ ज्योतियों पर पानी डालकर उन्हें बुझाने का प्रयास किया था।
4. पानी डालने पर भी ज्योतियों पर कोई असर नहीं हुआ। अकबर की लाख कोशिशों के बाद भी वह यहां की चमत्करी ज्वाला बुझा नहीं पाया। यह चमत्कार देखकर अकबर भी देवी की शक्तियों को पहचान गया और उसने देवी को सोने का छत्र चढ़ाया।
5. मां ने अकबर का चढ़ाया हुआ छत्र स्वीकार नहीं किया। अकबर के चढ़ाने पर वह छत्र गिर गया और वह सोने का न रह कर किसी अन्य धातु में बदल गया। वह छत्र आज भी मंदिर में सुरक्षित रखा हुआ है।