सार
जगन्नाथ पुरी में रथयात्रा के पहले का सबसे महत्वपूर्ण उत्सव पूर्णिमा स्नान शुक्रवार को हुआ।
उज्जैन. जगन्नाथ पुरी में रथयात्रा के पहले का सबसे महत्वपूर्ण उत्सव पूर्णिमा स्नान शुक्रवार को हुआ। मंदिर के भीतर ही करीब 300 लोगों की मौजूदगी में मनाए गए इस उत्सव के लिए अलसुबह भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा देवी की प्रतिमाओं को गर्भगृह से बाहर लाया गया। स्नान मंडप में करीब 170 पुजारियों ने भगवान को 108 घड़ों के सुगंधित जल से स्नान कराया।
शुक्रवार शाम तक भगवान गर्भगृह से बाहर ही रहेंगे फिर 15 दिन के लिए वे एकांतवास में रहेंगे। इस दौरान भगवान को औषधियां और हल्का भोग ही लगेगा। अब जगन्नाथ मंदिर में 23 जून को ही रथयात्रा के लिए भगवान बाहर आएंगे। तब तक मंदिर में दर्शन बंद रहेंगे।
रात 12 बजे से ही शुरू हो गई थी तैयारियां
श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन समिति के सदस्य और मंदिर के पुजारी श्याम महापात्रा के मुताबिक रात 12 बजे से भगवान के पूर्णिमा स्नान की तैयारियां शुरू हो गई थीं। भगवान की श्रीप्रतिमाओं को गर्भगृह से स्नान मंडप में लाया गया। यहीं सुबह से वैदिक मंत्रों के साथ स्नान की विधि शुरू हुई। भगवान जगन्नाथ के साथ बलभद्र और सुभद्रा देवी को भी सुगंधित जल के 108 घड़ों से स्नान कराया गया। इस दौरान वैदिक मंत्रों का जाप किया गया।
सालभर में एक बार ही उपयोग होता है कुंए का पानी
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के पूर्णिमा स्नान के लिए मंदिर प्रांगण के उत्तर दिशा में मौजूद कुंए के पानी से लिया जाता है। इस कुंए का पानी पूरे साल में सिर्फ एक बार ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा पर इस स्नान के लिए ही उपयोग किया जाता है। कुंए को साल में सिर्फ एक बार खोला जाता है। बस एक दिन इस कुंए से पानी निकालकर इसे फिर से बंद कर दिया जाता है।
कस्तूरी, केसर आदि औषधियों से स्नान
स्नान के लिए जो 108 घड़ों में पानी भरा जाता है, उनमें कई तरह की औषधियां मिलाई जाती हैं। कस्तूरी, केसर, चंदन जैसे सुगंधित द्रव्यों को पानी में मिलाकर पानी तैयार किया जाता है। सभी भगवानों के लिए घड़ों की संख्या भी निर्धारित है। मंदिर के प्रांगण में ही स्नान मंडप बनाया गया है।