सार
शिव जी से जुड़ी कई कहानियां ग्रंथों में है, जिसमें से 1 कहानी में बताया गया है कि भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र शिव जी ने दिया था
उज्जैन. भगवान शिव से जुड़ी अनेक कथाएं धर्म ग्रंथों में मिलती है। सावन के इस पवित्र महीने में हम आपको शिवजी से जुड़ी कुछ ऐसी ही रोचक कथाओं के बारे में बता रहे हैं। भगवान विष्णु को हर चित्र व मूर्ति में सुदर्शन चक्र धारण किए दिखाया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं यह चक्र भगवान विष्णु को किसने और क्यों दिया था। इससे संबंधित कथा का वर्णन शिवपुराण की कोटिरुद्र संहिता में मिलता है-
शिवजी ने दिया था भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र
- एक बार जब दैत्यों के अत्याचार बहुत बढ़ गए। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास आए और दैत्यों का वध करने के लिए प्रार्थन की। दैत्यों का नाश करने के लिए भगवान विष्णु कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की उपासना करने लगे।
- वे 1 हजार नामों से भगवान शिव की स्तुति करने लगे। भगवान विष्णु प्रत्येक नाम पर एक कमल का फूल भगवान शिव को चढ़ाते। तब भगवान शंकर ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए एक हजार कमल में से एक कमल का फूल छिपा दिया।
- शिव की माया के कारण विष्णु को यह पता न चला। एक फूल कम पाकर भगवान विष्णु उसे ढूंढने लगे, लेकिन परंतु फूल नहीं मिला। तब भगवान विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपना एक नेत्र निकालकर शिव को अर्पित कर दिया।
- विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा। तब भगवान विष्णु ने दैत्यों को नाश करने के लिए अजेय शस्त्र का वरदान मांगा।
- तब भगवान शंकर ने विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया। विष्णु ने उस चक्र से दैत्यों का संहार कर दिया। इस प्रकार देवताओं को दैत्यों से मुक्ति मिली तथा सुदर्शन चक्र उनके स्वरूप के साथ सदैव के लिए जुड़ गया।
भगवान शिव को क्यों नहीं चढ़ाते केतकी का फूल
- भगवान शिव को केतकी का फूल नहीं चढ़ाया जाता, ये बात हम सभी जानते हैं। लेकिन ऐसा क्यों है ये बात बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम आपको इससे संबंधित कथा बता रहे हैं।
- शिवपुराण के अनुसार, एक बार ब्रह्मा व विष्णु में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है? ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे।
- तभी वहां एक विराट ज्योतिर्मय लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा, उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग का छोर ढूंढने निकले। छोर न मिलने के कारण विष्णु लौट आए।
- ब्रह्मा भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णु से कहा कि वे छोर तक पहुंच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्माजी के असत्य कहने पर स्वयं भगवान शिव वहां प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी की आलोचना की।
- दोनों देवताओं ने महादेव की स्तुति की। तब शिवजी बोले कि मैं ही सृष्टि का कारण, उत्पत्तिकर्ता और स्वामी हूं। मैंने ही तुम दोनों को उत्पन्न किया है।
- शिव ने केतकी पुष्प को झूठा साक्ष्य देने के लिए दंडित करते हुए कहा कि यह फूल मेरी पूजा में उपयोग नहीं किया जा सकेगा। इसीलिए शिव के पूजन में कभी केतकी का फूल नहीं चढ़ाया जाता।