सार
इस बार 10 जनवरी, शुक्रवार को पौष मास की पूर्णिमा है। इसे शाकंभरी पूर्णिमा भी कहते हैं।
उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस दिन माता शाकंभरी की जयंती मनाई जाती है। माता शाकंभरी को देवी दुर्गा की ही रूप माना जाता है। जानिए माता दुर्गा को क्यों लेना पड़ा ये अवतार-
इसलिए माता दुर्गा ने लिया शाकंभरी अवतार
- दानवों के उत्पात से त्रस्त भक्तों ने कई वर्षों तक सूखा एवं अकाल से ग्रस्त होकर देवी दुर्गा से प्रार्थना की। तब देवी इस अवतार में प्रकट हुईं, उनकी हजारों आखें थीं।
- अपने भक्तों को इस हाल में देखकर देवी की इन हजारों आंखों से नौ दिनों तक लगातार आंसुओं की बारिश हुई, जिससे पूरी पृथ्वी पर हरियाली छा गई।
- यही देवी शताक्षी के नाम से भी प्रसिद्ध हुई एवं इन्ही देवी ने कृपा करके अपने अंगों से कई प्रकार की शाक, फल एवं वनस्पतियों को प्रकट किया। इसलिए उनका नाम शाकंभरी प्रसिद्ध हुआ।
- पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शाकंभरी नवरात्र का आरंभ होता है, जो पौष पूर्णिमा पर समाप्त होता है। इस दिन शाकंभरी जयंती का पर्व मनाया जाता है।
- मान्यता के अनुसार इस दिन असहायों को अन्न, शाक (कच्ची सब्जी), फल व जल का दान करने से अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती हैं व देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं।
ऐसा है माता शाकंभरी का स्वरूप
- धर्म ग्रंथों के अनुसार देवी शाकंभरी आदिशक्ति दुर्गा के अवतारों में एक हैं। दुर्गा के सभी अवतारों में से रक्तदंतिका, भीमा, भ्रामरी, शाकंभरी प्रसिद्ध हैं। दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य में देवी शाकंभरी के स्वरूप का वर्णन इस प्रकार है-
मंत्र
शाकंभरी नीलवर्णानीलोत्पलविलोचना।
मुष्टिंशिलीमुखापूर्णकमलंकमलालया।।
अर्थात- देवी शाकंभरी का वर्ण नीला है, नील कमल के सदृश ही इनके नेत्र हैं। ये पद्मासना हैं अर्थात् कमल पुष्प पर ही विराजती हैं। इनकी एक मुट्ठी में कमल का फूल रहता है और दूसरी मुट्ठी बाणों से भरी रहती है।