सार

धर्म ग्रंथों में माघ महीने को बहुत ही पवित्र माना गया है। इस माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है।

उज्जैन. षटतिला एकादशी व्रत में तिल का छ: रूप में उपयोग करना उत्तम फलदाई माना जाता है। जो व्यक्ति जितने रूपों में तिल का उपयोग तथा दान करता है उसे उतने हजार वर्ष तक स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है। षटतिला एकादशी पर 6 प्रकार से तिल के उपयोग तथा दान की बात कही है-

तिलस्नायी तिलोद्वार्ती तिलहोमी तिलोद्की।
तिलभुक् तिलदाता च षट्तिला: पापनाशना:।।

अर्थात- इस दिन तिल के जल से स्नान, तिल का उबटन, तिल से हवन, तिल मिले जल को पीने, तिल का भोजन तथा तिल का दान करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है।

1. षटतिला एकादशी पर सुबह स्नान के जल में थोड़े सफेद तिल मिला लें। इसी जल से स्नान करें। तिलों के इस उपयोग को परम फलदायी माना गया है।
2.  तिल का दूसरा प्रयोग तिल का उबटन लगाकर करें। ऐसा करने से सर्दी के मौसम में आपकी त्वचा पर रूखापन नहीं आएगा और अन्य त्वचा विकारों से दूरी रहेगी।
3. तिल के तीसरे प्रयोग में पूर्व की ओर मुंह करके पांच मुट्ठी तिलों से 108 बार ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें और आहुति दें। इससे आपके घर में सुख-शांति बनी रहेगी।
4. षटतिला एकादशी पर तिल मिश्रित पानी पानी चाहिए। आयुर्वेद में भी ऐसे जल को औषधि के समान कहा गया है। इससे शरीर के अंदर आवश्यक ऊर्जा बनी रहती है।
5. इस दिन तिल युक्त भोजन करना चाहिए। यानी तिल से बने खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। शीत ऋतु में तिलयुक्त भोजन करने से ऋतुजन्य व्याधियों से छुटकारा मिलता है।
6. तिल का छठा प्रयोग दान करके करें। महाभारत में उल्लेख है कि जो भी मनुष्य षटतिला एकादशी पर तिल का दान करता है, वह कभी नरक के दर्शन नहीं करता है।

 

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