सार

पड़ौसी मुल्क पाकिस्तान (Pakistan) में बंटवारे के समय सैकड़ों प्राचीन मंदिर थे, लेकिन उनमें से अब कुछ ही शेष बचे हैं। इनमें से अधिकांश रख-रखाव के अभाव में या तो खंडहर में बदल चुके हैं तो कुछ मंदिरों पर अवैध कब्जा हो चुका है।

 

उज्जैन. पाकिस्तान में कुछ मंदिर आज भी अपनी विरासत समेटे हुए हैं। ये मंदिर आज भी हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र हैं। हाल ही में पाकिस्तान सरकार ने ऐसे ही एक प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार की घोषणा की है। ये मंदिर 1200 साल पुराना बताया जाता है। इस पर कुछ लोगों ने अवैध किया हुआ था। आगे जानिए कौन-सा है ये मंदिर और जानिए पाकिस्तान के कुछ प्रमुख मंदिरों के बारे में खास बातें…

वाल्मीकि मंदिर का होगा नवीनीकरण
जानकारी के अनुसार, पाकिस्तान के लाहौर में 1200 साल पुराने वाल्मीकि मंदिर का नवीनीकरण किया जाएगा। इस मंदिर में कई सालों से कुछ लोगों ने अवैध कब्जा किया हुआ था। कोर्ट में लंबी लड़ाई के बाद ETPB (एक संगठन जो पाकिस्तान के मंदिरों की देखभाल करता है) को मंदिर का कब्जा सौंप दिया गया है। इसके पहले सिर्फ वाल्मीकि समाज के लोग ही मंदिर में पूजा करने जा सकते थे। उल्लेखनीय है कि 1992 में भारत में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद ये मंदिर कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गया था और इसे तोड़ने का प्रयास भी किया गया था। 

भगवान श्रीराम के पुत्र ने बसाया था ये नगर
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, आज जो लाहौर पाकिस्थान में स्थित है उसे भगवान श्रीराम के पुत्र लव ने बसाया था। ये पुराने पंजाब की राजधानी हुआ करता था। कुछ ग्रंथों में इसका नाम लवपुर बताया गया है। ईसा की सातवीं शताब्दी में ये शहर इतना महत्वपूर्ण था कि इसका उल्लेख चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने भी अपने पुस्तकों में किया है। और भी कई ग्रंथों व प्राचीन पुस्तकों में इस शहर के महत्व को बताया गया है।

लव-कुश के गुरु थे महर्षि वाल्मीकि
जब भगवान श्रीराम ने सीता को त्याग दिया था तब उन्होंने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहते हुए ही लव-कुश को जन्म दिया था।  लव-कुश को प्रारंभिक शिक्षा महर्षि वाल्मीकि ने ही दी थी और इनके संस्कार आदि भी किए थे। इस तरह महर्षि वाल्मीकि ही लव-कुश के गुरु थे। उन्हीं के सम्मान में पुरातन काल में इस मंदिर का निर्माण किया गया होगा। 

लाहौर में सिर्फ 2 मंदिरों में होती है पूजा
लाहौर स्थित वाल्मीकि मंदिर के इतिहास के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती, सिर्फ इतना कहा जाता है कि ये मंदिर लगभग 1200 साल पुराना है। बंटवारे के पहले यहां काफी संख्या में हिंदू और सिख आबादी थी। तब ये मंदिर आस्था का केंद्र हुआ करता था। उल्लेखनीय है कि लाहौर में स्थित श्रीकृष्ण मंदिर के अलावा सिर्फ वाल्मीकि मंदिर ही है, जिसमें इस समय पूजा अर्चना हो रही है। 

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