सार

इन दिनों श्राद्ध पक्ष चल रहा है। श्राद्ध के इन 16 दिनों में पितरों की स्मृति में तर्पण, पिंडदान आदि किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और अपने वशंजों को आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध से जुड़ी कई परंपराएं भी हैं, जिनके बिना श्राद्ध अधूरा माना जाता है। ऐसी ही एक परंपरा है ब्राह्मण भोज की। ये श्राद्ध का अभिन्न अंग है।

उज्जैन. श्राद्ध से जुड़ी कई परंपराएं भी हैं, जिनके बिना श्राद्ध अधूरा माना जाता है। ऐसी ही एक परंपरा है ब्राह्मण भोज की। ये श्राद्ध का अभिन्न अंग है। लोग अपनी इच्छा अनुसार 1 या उससे अधिक ब्राह्मणों को भोजन करवाते हैं। जानिए इस परंपरा से जुड़ी खास बातें…

- धर्म ग्रंथों के अनुसार ब्राह्मणों की उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से हुई है। इसलिए उन्हें अन्य वर्णों से श्रेष्ठ माना जाता है। प्राचीन काल में ज्ञान देने का अधिकार भी सिर्फ ब्राह्मणों को था।
- श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन करवाना एक जरूरी परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों को भोजन करवाए बिना श्राद्ध कर्म अधूरा माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, ब्राह्मणों के साथ वायु रूप में पितृ भी भोजन करते हैं।
- ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों द्वारा किया गया भोजन सीधे पितरों तक पहुंचता है। इसलिए विद्वान ब्राह्मणों को पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ भोजन कराने पर पितृ भी तृप्त होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
- भोजन करवाने के बाद ब्राह्मणों को घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितृ भी चलते हैं।
- इस परंपरा से जुड़ा मनोवैज्ञानिक पक्ष ये है कि सभी लोग अपने पितरों की प्रसन्नता चाहते हैं, इसलिए इस परंपरा का पालन प्राचीन काल से किया जा रहा है। समय के साथ ये श्राद्ध का जरूरी अंग बन गया है।