09 नवंबर तक रहेगा चातुर्मास, अगले 4 महीनों तक कतई न करें ये काम

चातुर्मास में मांगलिक कार्य नहीं किए जाते और धार्मिक कार्यों पर अधिक ध्यान दिया जाता है।

उज्जैन. हिंदू धर्म में चातुर्मास (देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक का समय) का विशेष महत्व है। चातुर्मास में मांगलिक कार्य नहीं किए जाते और धार्मिक कार्यों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। चातुर्मास के अंतर्गत सावन, भदौ, अश्विन व कार्तिक मास आता है। इस बार चातुर्मास का प्रारंभ 12 जुलाई, शुक्रवार से हो चुका है, जो 9 नवंबर, शनिवार तक रहेगा।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, इस दौरान भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। हमारे धर्म ग्रंथों में चातुर्मास के दौरान कई नियमों का पालन करना जरूरी बताया गया है तथा उन नियमों का पालन करने से मिलने वाले फलों का भी वर्णन किया गया है। जानिए चातुर्मास में कौन से काम करना चाहिए और कौन-से नहीं-

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  1. पलंग पर सोना, झूठ बोलना, मांस, शहद, गुड़, हरी सब्जी, मूली एवं बैंगन भी नहीं खाना चाहिए। अधिक नमी होने के कारण हरी सब्जियों में बैक्टीरिया और वायरस हो जाते हैं। इससे स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है।
  2. पापों के नाश व पुण्य प्राप्ति के लिए एक भुक्त (एक समय भोजन), अयाचित (बिना मांगा) भोजन या उपवास करने का व्रत ग्रहण करें।
  3. तेल से बनी चीजें खाने से बचें।
  4. चातुर्मास में सभी प्रकार के मांगलिक काम जहां तक हो सके, न करें।
  5. शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने व पाचन तंत्र को ठीक रखने के लिए पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर) का सेवन करें।

चातुर्मास का वैज्ञानिक महत्व

चातुर्मास मूलत: बारिश का मौसम होता है। इस समय बादल और वर्षा के कारण सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर नहीं आ पाता, सूर्य का प्रकाश कम होना, देवताओं के सोने का प्रतीक है। इस समय शरीर की पाचन शक्ति भी कम हो जाती है, जिससे शरीर थोड़ा कमजोर हो जाता है। आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी खोजा है कि चातुर्मास में (मुख्यत: वर्षा ऋतु में) विविध प्रकार के कीटाणु (बैक्टीरिया और वायरस) उत्पन्न हो जाते हैं।

चातुर्मास का धार्मिक महत्व

पुराणों में वर्णन आता है कि भगवान विष्णु इन 4 महीनों तक पाताल में राजा बलि के यहां निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। अर्थात इस समय भगवान विष्णु विश्राम अवस्था में होते हैं, इसलिए इस दौरान सकारात्मक शक्तियों को बल पहुंचाने के लिए व्रत, उपवास, हवन व यज्ञ करने का विधान है। इस काल में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गृहप्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ काम है, करने की मनाही है।

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