22 दिसंबर को अखुरथ चतुर्थी पर इस विधि से करें भगवान श्रीगणेश की पूजा, दूर होंगे संकट

धर्म ग्रंथों के अनुसार, पौष महीने की संकष्टी चतुर्थी को अखुरथ चौथ कहा गया है। ये व्रत साल 2021 के जनवरी महीने में 2 तारीख को भी किया गया था और अब 22 दिसंबर को भी ये व्रत किया जाएगा। इस साल के अंग्रेजी कैलेंडर में पौष महीना दो बार आने से ऐसी स्थिति बनी।

Asianet News Hindi | Published : Dec 21, 2021 7:30 AM IST

उज्जैन. विक्रम संवत 2077 का पौष महीना जनवरी में था और अब संवत 2078 का पौष महीना दिसंबर में चल रहा है। तिथियों की घट बढ़ की वजह से हिंदू कैलेंडर के महीने आगे खिसक जाते हैं। इसलिए अंग्रेजी और हिंदी कैलेंडर के महीने एक साथ नहीं मिल पाते हैं। इसी वजह से एक ही साल में दो बार अखुरथ चतुर्थी का योग बन रहा है।

अखुरथ चतुर्थी का महत्व
- अखुरथ यानी संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है, जिसका अर्थ है कठिन समय से मुक्ति पाना। 
- इस दिन भक्त अपने दुखों से छुटकारा पाने के लिए गणपति जी की अराधना करते हैं। गणेश पुराण के अनुसार चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना फलदायी होता है। इस दिन उपवास करने का और भी महत्व होता है।
- भगवान गणेश को समर्पित इस व्रत में श्रद्धालु अपने जीवन की कठिनाइयों और बुरे समय से मुक्ति पाने के लिए उनकी पूजा-अर्चना और उपवास करते हैं। 
- कई जगहों पर इसे संकट हारा कहते हैं तो कहीं इसे संकट चौथ भी कहा जाता है। इस दिन भगवान गणेश का सच्चे मन से ध्यान करने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और लाभ प्राप्ति होती है।

पूजा की विधि
- इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। बुधवार होने से इस दिन हरे रंग के कपड़े पहनना भी शुभ माना जाता है।
- ग्रंथों में बताया है कि व्रत और पर्व पर उस दिन के हिसाब से कपड़े पहनने से व्रत सफल होता है। स्नान के बाद गणपति जी की पूजा की शुरुआत करें।
- गणपति जी की मूर्ति को फूलों से अच्छी तरह से सजा लें। पूजा में तिल, गुड़, लड्डू, फूल, तांबे के कलश में पानी, धूप, चंदन, प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रखें।
- संकष्टी को भगवान गणपति को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं। शाम को चंद्रमा निकलने से पहले गणपति जी की पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें।

 

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