FACT : इस खास लकड़ी से बनती है भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा, पेड़ के नजदीक श्मशान होना है जरूरी

हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितिया तिथि को उड़ीसा स्थित पुरी में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा निकाली जाती है। इस बार यह रथयात्रा 4 जुलाई, गुरुवार से शुरू होगी।

rohan salodkar | Published : Jul 4, 2019 8:46 AM IST / Updated: Jul 11 2019, 11:52 AM IST

उज्जैन. हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितिया तिथि को उड़ीसा स्थित पुरी में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा निकाली जाती है। इस बार यह रथयात्रा 4 जुलाई, गुरुवार से शुरू होगी। इस रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमाओं को तीन अलग-अलग दिव्य रथों पर नगर भ्रमण कराया जाता है। 

कब बदली जाती है भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा?

भगवान जगन्नाथ व देव प्रतिमाएं उसी साल बदली जाती है, जिस साल में आषाढ़ के दो महीने आते हैं यानी आषाढ़ का अधिक मास आता है। ऐसा योग लगभग 19 साल में एक बार बनता है। इस मौके को नव-कलेवर कहते हैं। भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के लिए पेड़ चुनने के लिए कुछ खास चीजों पर भी ध्यान दिया जाता है जैसे- 

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1. भगवान जगन्नाथ व अन्य देव प्रतिमाओं का निर्माण नीम की लकड़ी से ही किया जाता है। भगवान जगन्नाथ का रंग सांवला होता है,नीम का वृक्ष उसी रंग का होना चाहिए। 


2. पेड़ में चार प्रमुख शाखाएं होनी चाहिए। 


3. पेड़ के नजदीक जलाशय (तालाब), श्मशान और चीटियों की बांबी होना जरूरी है। 


4. पेड़ की जड़ में सांप का बिल भी होना चाहिए। 


5. वह किसी तिराहे के पास हो या फिर तीन पहाड़ों से घिरा हुआ हो। 


6. पेड़ के पास वरूण, सहादा और बेल का वृक्ष होना चाहिए।


2 किलोमीटर की होती है रथयात्रा


रथयात्रा मुख्य मंदिर से शुरू होकर 2 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर पर समाप्त होती है। जहां भगवान जगन्नाथ सात दिन तक आराम करते हैं और आषाढ़ शुक्ल दशमी को पुनः रथ पर सवार होकर मुख्य मंदिर आते हैं। 

कलियुग का पवित्र धाम है जगन्नाथपुरी


पौराणिक मान्यताओं में चारों धामों को एक युग का प्रतीक माना जाता है। इसी प्रकार कलियुग का पवित्र धाम जगन्नाथपुरी माना गया है। यह भारत के पूर्व में उड़ीसा राज्य में स्थित है, जिसका पुरातन नाम पुरुषोत्तम पुरी, नीलांचल, शंख और श्रीक्षेत्र भी है। उड़ीसा या उत्कल क्षेत्र के प्रमुख देव भगवान जगन्नाथ हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा राधा और श्रीकृष्ण का युगल स्वरूप है। श्रीकृष्ण, भगवान जगन्नाथ के ही अंश स्वरूप हैं। इसलिए भगवान जगन्नाथ को ही पूर्ण ईश्वर माना गया है।


ऐसा है मंदिर का स्वरूप


- जगन्नाथ मंदिर 4,00,000 वर्ग फुट में फैला है और चहारदीवारी से घिरा है। कलिंग शैली के मंदिर स्थापत्यकला, और शिल्प के आश्चर्यजनक प्रयोग से परिपूर्ण, यह मंदिर, भारत के भव्य स्मारक स्थलों में से एक है। 
- मंदिर के शिखर पर भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र बना है। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है। 
- मंदिर के भीतर गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। मुख्य भवन एक 20 फुट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है तथा दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है। एक भव्य सोलह किनारों वाला एकाश्म स्तंभ, मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित है।

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