कई लोग साधु-संतों को देखकर कह देते हैं कि इन्हें दुनिया से क्या? साधु बनना तो बहुत आसान है। मगर हकीकत ये है कि साधु, सन्यासी बनने की राह इतनी कठिन होती है कि अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाएं।
उज्जैन. जूना अखाड़े के महंत विजयगिरि महाराज के मुताबिक सेना की ट्रेनिंग से भी ज्यादा सख्त ट्रेनिंग नागा साधुओं की होती है। एक आम आदमी से नागा साधु बनने तक का सफर बहुत ही कठिन और चुनौतियों भरा होता है। वैसे तो हर अखाड़े में दीक्षा के कुछ अपने नियम होते हैं, लेकिन कुछ कायदे ऐसे भी होते हैं, जो सभी दशनामी अखाड़ों में एक जैसे होते हैं। जानिए उन नियमों के बारे में-
1. करते हैं तहकीकात
जब कोई आम आदमी नागा साधु बनने के लिए आता है, तो अखाड़ा अपने स्तर पर उसके व उसके परिवार के बारे में तहकीकात करता है। अगर अखाड़े को ये लगता है कि वह साधु बनने के लिए सही व्यक्ति है, तो ही उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है।
2. ब्रह्मचर्य का पालन
अखाड़े में प्रवेश के बाद उसके ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। इसमें 6 महीने से लेकर 12 साल तक लग जाते हैं। अगर अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु यह निश्चित कर लें कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है फिर उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है।
3. बनाते हैं 5 गुरु
अगर व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करने की परीक्षा से सफलतापूर्वक गुजर जाता है, तो उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष बनाया जाता है। उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं। ये पांच गुरु पंच देव या पंच परमेश्वर (शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश) होते हैं।
4. खुद का पिंडदान और श्राद्ध
महापुरुष के बाद नागाओं को अवधूत बनाया जाता है। इसमें सबसे पहले उसे अपने बाल कटवाने होते हैं। अवधूत रूप में साधक स्वयं को अपने परिवार और समाज के लिए मृत मानकर अपने हाथों से अपना श्राद्ध कर्म करता है। ये पिंडदान अखाड़े के पुरोहित करवाते हैं।
5. ऐसे बनते हैं नागा
इस प्रक्रिया में साधु को नग्न अवस्था में 24 घंटे तक अखाड़े के ध्वज के नीचे खड़ा होना पड़ता है। इसके बाद वरिष्ठ नागा साधु लिंग की एक विशेष नस को खींचकर उसे नपुंसक कर देते हैं। इस प्रक्रिया के बाद वह नागा दिगंबर साधु बन जाता है।
6. मंत्र में आस्था
दीक्षा के बाद गुरु से मिले गुरुमंत्र में ही उसे संपूर्ण आस्था रखनी होती है। उसकी भविष्य की सारी तपस्या इसी गुरु मंत्र पर आधारित होती है।
7. भस्म और रूद्राक्ष
नागा साधुओं को भस्म एवं रूद्राक्ष धारण करना पड़ता है। भस्म और रूद्राक्ष ही एक तरह से इनके वस्त्र होते हैं। रोजाना सुबह स्नान के बाद नागा साधु सबसे पहले अपने शरीर पर भस्म रमाते हैं। यह भस्म भी ताजी होती है।
8. वस्त्रों का त्याग
नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती। अगर वस्त्र धारण करने हों, तो सिर्फ गेरुए रंग के वस्त्र ही नागा साधु पहन सकते हैं। वह भी सिर्फ एक वस्त्र, इससे अधिक गेरुए वस्त्र नागा साधु धारण नहीं कर सकते।
9. एक समय भोजन
नागा साधु दिन में केवल एक ही समय भोजन करते हैं, वो भी भिक्षा मांग कर। एक नागा साधु को अधिक से अधिक सात घरों से भिक्षा लेने का अधिकार है। अगर सातों घरों से कोई भिक्षा ना मिले, तो उसे भूखा रहना पड़ता है।
10. केवल जमीन पर ही सोना
नागा साधु सोने के लिए पलंग, खाट या अन्य किसी साधन का उपयोग नहीं कर सकता। यहां तक कि नागा साधुओं को गादी पर सोने की भी मनाही होती है। नागा साधु केवल जमीन पर ही सोते हैं। यह बहुत ही कठोर नियम है, जिसका पालन हर नागा साधु को करना पड़ता है।
11. अन्य नियम
बस्ती से बाहर निवास करना, किसी को प्रणाम न करना और न किसी की निंदा करना तथा केवल संन्यासी को ही प्रणाम करना आदि कुछ और नियम हैं, जो दीक्षा लेने वाले हर नागा साधु को पालन करना पड़ते हैं।
12. नागाओं के पद और अधिकार
एक बार नागा साधु बनने के बाद उसके पद और अधिकार भी बढ़ते जाते हैं। नागा साधु के बाद महंत, श्रीमहंत, जमातिया महंत, थानापति महंत, पीर महंत, दिगंबरश्री, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर जैसे पदों तक जा सकता है।