इस वजह से जगन्नाथ पुरी में आज भी की जाती है भगवान की अधूरी मर्ति की पूजा, क्या है इसका रहस्य?

हिंदू धर्म में भगवान की खंडित प्रतिमा की पूजा करने की मनाही है। इसे अशुभ माना जाता है। ज्योतिष और वास्तु में भी ऐसा करना ठीक नहीं माना जाता, लेकिन देश में भगवान श्रीकृष्ण का एक मंदिर ऐसा भी है जहां अधूरी मूर्ति की पूजा की जाती है। ये मंदिर है उड़ीसा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का।

Asianet News Hindi | Published : Jul 13, 2021 3:17 AM IST / Updated: Jul 13 2021, 12:40 PM IST

उज्जैन. हिंदू धर्म में भगवान की खंडित प्रतिमा की पूजा करने की मनाही है। इसे अशुभ माना जाता है। ज्योतिष और वास्तु में भी ऐसा करना ठीक नहीं माना जाता, लेकिन देश में भगवान श्रीकृष्ण का एक मंदिर ऐसा भी है जहां अधूरी मूर्ति की पूजा की जाती है। ये मंदिर है उड़ीसा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का। सदियों से यहां भगवान की अधूरी प्रतिमा की पूजा की जा रही है। इस परंपरा से जुड़ी एक कथा भी प्रचलित है, जो इस प्रकार है…
 
- कलयुग के प्रारंभिक काल में मालव देश पर राजा इंद्रद्युम का शासन था। वह भगवान जगन्नाथ का भक्त था। एक दिन इंद्रद्युम नीलांचल पर्वत पर गया तो उसे वहां देव प्रतिमा के दर्शन नहीं हुए।
- निराश होकर जब वह वापस आने लगा तभी आकाशवाणी हुई कि शीघ्र ही भगवान जगन्नाथ मूर्ति के स्वरूप में पुन: धरती पर आएंगे। यह सुनकर वह खुश हुआ। एक बार जब इंद्रद्युम पुरी के समुद्र तट पर टहल रहा था, तभी उसे समुद्र में लकड़ी के दो विशाल टुकड़े तैरते हुए दिखाई दिए।
- तब उसे आकाशवाणी की याद आई और उसने सोचा कि इसी लकड़ी से वह भगवान की मूर्ति बनवाएगा। तभी भगवान की आज्ञा से देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा वहां बढ़ई के रूप में आए और उन्होंने उन लकड़ियों से भगवान की मूर्ति बनाने के लिए राजा से कहा। राजा ने तुरंत हां कर दी।
- तब बढ़ई रूपी विश्वकर्मा ने यह शर्त रखी कि वह मूर्ति का निर्माण एकांत में करेंगे, यदि कोई वहां आया तो वह काम अधूरा छोड़कर चले जाएंगे। राजा ने शर्त मान ली। तब विश्वकर्मा ने गुण्डिचा नामक स्थान पर मूर्ति बनाने का काम शुरू किया। एक दिन भूलवश राजा बढ़ई से मिलने पहुंच गए।
- उन्हें देखकर विश्वकर्मा वहां से अन्तर्धान हो गए और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी रह गईं। तभी आकाशवाणी हुई कि भगवान इसी रूप में स्थापित होना चाहते हैं। तब राजा इंद्रद्युम ने विशाल मंदिर बनवा कर तीनों मूर्तियों को वहां स्थापित कर दिया।
- भगवान जगन्नाथ ने ही राजा इंद्रद्युम को दर्शन देकर कहा कि कि वे साल में एक बार अपनी जन्मभूमि अवश्य जाएंगे। स्कंदपुराण के उत्कल खंड के अनुसार, इंद्रद्युम ने आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को प्रभु को उनकी जन्मभूमि जाने की व्यवस्था की। तभी से यह परंपरा रथयात्रा के रूप में चली आ रही है।
- एक अन्य मत के अनुसार, सुभद्रा के द्वारिका दर्शन की इच्छा पूरी करने के लिए श्रीकृष्ण व बलराम ने अलग-अलग रथों में बैठकर यात्रा की थी। सुभद्रा की नगर यात्रा की स्मृति में ही यह रथयात्रा पुरी में हर साल होती है।

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